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15 या 16 मई कब है दुर्गाष्टमी, नोट करें डेट

Durga Ashtami May 2024: सनातन धर्म में मासिक दुर्गाष्टमी जरूरी मानी जाती है. हर महीने में शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मासिक दुर्गाष्टमी पड़ती है, जो दुर्गा माता को समर्पित है. इस दिन वकायदा मां दुर्गा की उपासना की जाती है. उदया तिथि के अनुसार, 15 मई को मासिक दुर्गाष्टमी का व्रत रखा जाएगा. मासिक दुर्गाष्टमी के दिन दुर्गा मैया की पूरी श्रद्धा से पूजा-अर्चना करने से जीवन के कष्टों से मुक्ति मिल सकती है. आइए जानते हैं मई की मासिक दुर्गाष्टमी की पूजा-विधि और शुभ मुहूर्त-

कब है दुर्गाष्टमी?

वैशाख, शुक्ल अष्टमी शुरू – 04:19 ए एम, मई 15
वैशाख, शुक्ल अष्टमी खत्म – 06:22 ए एम, मई 16

पूजा के शुभ मुहूर्त
ब्रह्म मुहूर्त- 04:07 ए एम से 04:48 ए एम
प्रातः सन्ध्या- 04:28 ए एम से 05:30 ए एम
अभिजित मुहूर्त- कोई नहीं
विजय मुहूर्त- 02:33 पी एम से 03:28 पी एम
गोधूलि मुहूर्त- 07:04 पी एम से 07:25 पी एम
सायाह्न सन्ध्या- 07:05 पी एम से 08:08 पी एम
अमृत काल- 01:40 पी एम से 03:25 पी एम
निशिता मुहूर्त- 11:57 पी एम से 12:38 ए एम, मई 16

माँ दुर्गा पूजा-विधि 
1- स्नान आदि कर मंदिर की साफ सफाई करें
2- माता दुर्गा का जलाभिषेक करें
3- माँ दुर्गा का पंचामृत सहित गंगाजल से अभिषेक करें
4- अब माता को लाल चंदन, सिंदूर, शृंगार का समान और लाल पुष्प अर्पित करें
5- मंदिर में घी का दीपक प्रज्वलित करें
6- पूरी श्रद्धा के साथ माता दुर्गा की आरती करें
7- माता को भोग लगाएं
8- अंत में क्षमा प्रार्थना करें

पढ़ें दुर्गा चालीसा…
नमो नमो दुर्गे सुख करनी.
नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी॥
निरंकार है ज्योति तुम्हारी.
तिहूं लोक फैली उजियारी॥
शशि ललाट मुख महा विशाला.
नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥
रूप मातु को अधिक सुहावे.
दरश करत जन अति सुख पावे॥
तुम संसार शक्ति लै कीना.
पालन हेतु अन्न धन दीना॥
अन्नपूर्णा हुई जग पाला.
तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥
प्रलयकाल सब नाशन हारी.
तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें.
ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥
रूप सरस्वती को तुम धारा.
दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥
धरयो रूप नरसिंह को अम्बा.
परगट भई फाड़कर खम्बा॥
रक्षा करि प्रह्लाद बचायो.
हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं.
श्री नारायण अंग समाहीं॥
क्षीरसिन्धु में करत विलासा.
दयासिन्धु दीजै मन आसा॥
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी.
महिमा अमित न जात बखानी॥
मातंगी अरु धूमावति माता.
भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥
श्री भैरव तारा जग तारिणी.
छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥
केहरि गाड़ी सोह भवानी.
लांगुर वीर चलत अगवानी॥
कर में खप्पर खड्ग विराजै.
जाको देख काल डर भाजै॥
सोहै अस्त्र और त्रिशूला.
जाते उठत दुश्मन हिय शूला॥
नगरकोट में तुम्हीं विराजत.
तिहुँ लोक में डंका बाजत॥
शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे.
रक्तबीज शंखन संहारे॥
महिषासुर नृप अति अभिमानी.
जेहि अघ भार मही अकुलानी॥
रूप कराल कालिका धारा.
सेन सहित तुम तिहि संहारा॥
परी गाढ़ सन्तन पर जब जब.
भई सहाय मातु तुम तब तब॥
आभा पुरी अरु बासव लोका.
तब महिमा सब रहें अशोका॥
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी.
तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥
प्रेम भक्ति से जो यश गावें.
दुःख दरिद्र निकट नहिं आवें॥
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई.
जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई॥
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी.
योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥
शंकर आचारज तप कीनो.
काम क्रोध जीति सब लीनो॥
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को.
काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥
शक्ति रूप का मरम न पायो.
शक्ति गई तब मन पछितायो॥
शरणागत हुई कीर्ति बखानी.
जय जय जय जगदम्ब भवानी॥
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा.
दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥
मोको मातु कष्ट अति घेरो.
तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥
आशा तृष्णा निपट सतावें.
रिपु मुरख मोही डरपावे॥
शत्रु नाश कीजै महारानी.
सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥
करो कृपा हे मातु दयाला.
ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला..
जब लगि जियऊं दया फल पाऊं.
तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं॥
श्री दुर्गा चालीसा जो कोई गावै.
सब सुख भोग परमपद पावै॥
देवीदास शरण निज जानी.
करहु कृपा जगदम्ब भवानी॥
॥इति श्रीदुर्गा चालीसा सम्पूर्ण॥
जय माता दी

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