₹1000 किलो बिकती है इस औषधीय पौधे की जड़
ज्यादातर किसान पारंपरिक फसलों से होने वाली कम आमदनी से परेशान हैं। ऐसे में कई किसान खेती में नए प्रयोग कर आमदनी बढ़ा रहे हैं। उन्हीं प्रयोगों में से एक है सतावर की खेती। अच्छी बात यह है कि बिहार के पश्चिम चम्पारण जिले के कुछ किसान इसकी खेती बड़े स्तर पर सफल ढंग से कर चुके हैं। उनका दावा है कि इस औषधीय पौधे की खेती किसी भी किसान की आर्थिक स्थिति को बदल सकती है। कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो, किसानों को प्रति एकड़ 350 क्विंटल गिली जड़ें प्राप्त होती हैं, जो सूखने के बाद 35 क्विंटल ही रह जाती है। सतावर की खेती में लागत प्रति एकड़ 80 हजार से 1 लाख आती है। जबकि, फायदा प्रति एकड़ 4 लाख रुपए होता है। ऐसे में साफ है कि यह किसानों की आय में बढ़ोतरी करने के लिए एक उपयुक्त विकल्प है।
सतावर औषधीय फसल है। इसका इस्तेमाल कई दवाइयों और पौष्टिकता से भरे खाद्य सामग्रियों को बानने के लिए किया जाता है। बीते कुछ वर्ष में इस पौधे की मांग खूब बढ़ी है। इसकी मूल्य में भी वृद्धि हुई है। पश्चिम चम्पारण जिले के मझौलिया प्रखंड के रुलही निवासी किसान रमाशंकर शर्मा बताते हैं कि सतावर की खेती किसानों के लिए आमदनी का अच्छा जरिया बन सकती है। राष्ट्रीय और तरराष्ट्रीय बाजार में इसके खरीदार भी मिल जाते हैं। गौर करने वाली बात यह है कि रमाशंकर पिछले 5 वर्ष से इसकी खेती कर रहे हैं। जिसे वे क्वालिटी के मुताबिक बाजार में 500 से 1000 रुपए प्रति किलो की रेट पर बेचते हैं।
कम सिंचाई के साथ बलुई दोमट मिट्टी में करें खेती
रमाशंकर बताते हैं कि यह फसल जुलाई से लेकर सितंबर तक लगती है। इसे दो फीट की दूरी पर लगाया जाता है और क्यारी से क्यारी दो फीट और पौधे से पौधे की दूरी भी दो फीट होनी चाहिए। शतावर के पौधे को पूरी तरह विकसित होने और कंद के इस्तेमाल लायक होने में कुल 3 सालों का समय लगता है। इसकी खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी को सबसे उपयुक्त माना जाता है। शतावर के पौधों को अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है। आरंभ में हफ्ते में एक बार और जब पौधे बड़े हो जाएं तो महीने में एक बार मामूली सिंचाई करनी पड़ती है। इसकी खेती के लिए प्रति एकड़ 5 किलो बीज की आवश्यकता होती है। पौध रोपण के बाद जब पौधे पीले पड़ने लगे, तो इसकी जड़ों की खुदाई कर लेनी चाहिए। इसके बाद इन्हें फिर भिन्न-भिन्न कर के सुखाया जाता है