साइबर अपराध में 90% महिलाएं होती हैं टारगेट
चित्रा फेसबुक पर रेगुलर अपनी फोटो अपलोड करती। बर्थ डे, एनिवर्सरी, छुटि्टयों की फोटो ही नहीं, बल्कि प्रत्येक दिन की सेल्फी, ऑफिस में काम करने की फोटो पोस्ट करती रहती। कुछ समय बाद उन्हें पता चला कि उनकी फोटो एडल्ट वेबसाइट पर डाल दी गई है।
चित्रा ने एफआईआर करवाई, लेकिन पुलिस ने कुछ नहीं किया। केरल के कोच्चि में हुई इस घटना को महीनों बीत चुके हैं और चित्रा जब-तब चेक करती हैं कि एडल्ट साइट से उसकी फोटो हटी या नहीं। लेकिन उनकी फोटोज़ आज भी वहीं के वहीं टंगी हैं।
चित्रा की ही तरह, अनु (बदला हुआ नाम) का भी मुकदमा है। अनु 3 वर्षों तक एक लड़के के साथ रिलेशन में रहीं। लड़के ने प्राइवेट वीडियो कॉल के समय स्क्रीनशॉट ले लिया।
जब दोनों का ब्रेकअप हो गया तो लड़के ने सोशल मीडिया पर वो फोटो डाल दी। फोटो के साथ लड़की का कॉन्टैक्ट नंबर, एड्रेस भी जोड़ दिया।
अनु को प्रत्येक दिन अजनबी नंबरों से टेलीफोन आने लगे। लोग गंदे कमेंट्स करते, ऊंटपटांग बातें करते।
महिलाओं के विरुद्ध क्राइम के ये नए रूप हैं हालांकि इनका उद्देश्य भी स्त्रियों के मान-सम्मान, उनकी प्रतिष्ठा को कुचलना ही है।
साइबर स्टॉकिंग, बुलिइंग, साइबर हैरासमेंट, मॉर्फिंग, रिवेंज पोर्नोग्राफी स्त्रियों के विरुद्ध अपराधों की एक नयी परिभाषा है।
इंटरनेट की दुनिया में किसी आदमी के विरुद्ध क्राइम की जितनी घटनाएं होती हैं उनमें 90% पीड़ित महिलाएं होती हैं।
‘वॉयलेंस औनलाइन इन इंडिया’ रिपोर्ट के अनुसार, हिंदुस्तान में हर सेकेंड एक स्त्री साइबर अपराध की शिकार होती है। कहने को सोशल मीडिया है लेकिन स्त्रियों के लिए ‘अनसोशल’ हो गया है जहां उनके मान-सम्मान, प्राइवेसी और सुरक्षा को ताक पर रख दिया जाता है।
रिपोर्ट के अनुसार, शहरी क्षेत्र की 50% महिलाएं औनलाइन एब्यूज झेलने को विवश होती हैं।
एक्स हसबैंड, एक्स बॉयफ्रेंड गंदे मैसेज भेजते
एडवोकेट और रिसर्चर देबव्रती हलदर हिंदुस्तान की पहली राइटर हैं जिन्होंने स्त्रियों के विरुद्ध साइबर अपराध पर लिखा। ‘साइबर अपराध एंड विक्टिमाइजेशन ऑफ वुमन’ पुस्तक की लेखिका हलदर कहती हैं कि
85% मामलों में सोशल मीडिया पर स्त्रियों को गाली-गलौच, भद्दे और गंदे मैसेज भेजे जाते हैं।
17% मामलों में स्त्रियों से दोस्ती करने के लिए लगातार ई-मेल आते हैं।
50% मामलों में एक्स पार्टनर या हसबैंड धमकियों भरे ई-मेल और मैसेज भेजते हैं।वे उनके सोशल नेटवर्किंग प्रोफाइल पर सेक्शुअल रिमार्क भेजते हैं।
आधे से अधिक स्त्रियों को उनके लाइफस्टाइल चॉइस को लेकर टारगेट किया जाता है। वो क्या पहनती हैं, कैसा मेकअप करती हैं इस पर कमेंट किया जाता है।
उनकी सेक्शुअलिटी और स्त्रियों के विचार, आइडियोलॉजी को लेकर टारगेट किया जाता है।
सोशल मीडिया पर महिलाओें को ही क्यों टारगेट किया जाता है?
पंजाब यूनिवर्सिटी में जेंडर स्टडीज की एसोसिएट प्रोफेसर डाक्टर अमीर सुलताना के अनुसार, पितृसत्ता सोशल मीडिया में भी उसी तरह उपस्थित है जिस तरह हमारे सामाजिक परिवेश में जमी हुई है।
सोशल मीडिया पर जोक्स, मीम्स और निगेटिव कैरेक्टर्स की भरमार रहती है। कई लोग कहते हैं कि ये महज ‘फन’ यानी मस्ती के लिए होता है।
हम सभी इसे पहचान नहीं पाते और वाट्सएप पर फॉरवर्ड करते रहते हैं। लेकिन हकीकत यही है कि सोशल मीडिया में भी पिृत्तसत्ता का भूत घर और समाज की तरह ही घूमता देखा जा सकता है।
महिलाओं को दिमाग कम होता है, वो नाते-रिश्तों को तरजीह नहीं देती, मर्दों की तरह वो काम नहीं कर सकतीं, अधिक घंटे ऑफिस में नहीं रह सकतीं, उन्हें तो चूल्हा-चौका ही संभालना चाहिए जैसी जली-कटी बातें सोशल मीडिया पर घूमती हैं।
यही मर्दाना सोच है जो सोशल मीडिया पर चीख-चिल्ला कर बार-बार जताया जाता है। महिलाएं सरलता से टारगेट हो जाती हैं। वो विरोध भी नहीं कर पातीं। घर से भी उन्हें सपोर्ट कम नाराजगी अधिक मिलती है।
खुद लड़कियां डर जाती हैं। परिवार क्या कहेगा, पति क्या कहेंगे, ससुराल वालों की नजर में क्या इज्जत रहेगी।
डॉ। सुलताना कहती हैं कि किसी स्त्री की फोटो यदि पोर्न साइट पर चली जाए तो उस पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ता है और सब उसे ही उत्तरदायी ठहराते हैं।
केरल में साइबर सुरक्षा फाउंडेशन के फाउंडर जियास जमाल कहते हैं कि सोशल मीडिया पर 16 से 24 साल की उम्र की लड़कियां जो अपनी फोटोज़ और वीडियो अपलोड करती हैं उन्हें साइबर क्रिमिनल्स कभी भी कहीं से भी उठाकर पोर्न साइट पर लगा देते हैं।
ये क्रिमिनल्स सेलिब्रेटीज के मुद्दे में थोड़ा बचकर चलते हैं लेकिन आम स्त्री यूजर उनकी पहली टारगेट होती हैं। अवैध ढंग से निकाली गई फोटो को पोर्न साइट से हटाना असंभव और कठिन होता है।
भोली-भाली स्त्रियों को जान-बूझकर फंसाया जाता है
गुजरात के गांधीनगर स्थित नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर डाक्टर अंजनी सिंह तोमर बताती हैं कि महिलाएं अपने भोले स्वभाव और विनम्रता स्वभाव की वजह से क्रिमिनल्स की इजी टारगेट होती हैं। वो सामने वाले के झांसे में आ जाती हैं। जिन पर भरोसा करती हैं उस पर अटूट विश्वास कर लेती हैं। स्त्रियों के इन गुणों का ही लोग लाभ उठाते हैं। खास बात यह है कि कई मामलों में जान पहचान का आदमी ही शत्रु निकलता है।
साइबर अपराध पर हुई एक रिसर्च में कहा गया है कि सोशल मीडिया पर मर्दों की भागीदारी अधिक है।
रिपोर्ट के अनुसार, माइक्रो ब्लॉगिंग साइट एक्स (पहले ट्वीटर) पर 63% से अधिक पुरुष हैं जबकि इंस्टाग्राम पर 53% पुरुष हैं। फेसबुक पर भी 40 से 42% ही महिलाएं हैं। कोविड के समय तक तो सोशल मीडिया साइट पर स्त्रियों की भागीदारी काफी कम थी।
डॉ। अंजनी बताती हैं कि सोशल मीडिया पर मर्दों की संख्या अधिक होने का एक कारण यह हो सकता है कि वो स्त्रियों को सरलता से टारगेट कर लेते हैं।
उनमें पितृसत्तात्मक माइंडसेट हावी रहती है। कई पुरुष यह कहते हुए सुने जाते हैं कि स्त्रियों और लड़कियों को सोशल मीडिया से दूर रहना चाहिए।
वो लड़कियों को डराते हैं कि सोशल मीडिया पर कुछ भी हो सकता है।
जो सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं उनमें से कई की यह मानसिकता होती है कि वे स्त्रियों के बारे में भला-बुरा कहें, उनका मजाक उड़ाएं।
सर्वे में स्त्रियों ने साइबर अपराध से जुड़े अपने अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि उन्हें किस तरह के कड़वे अनुभव हुए।
अनुभवों का भयानक चेहरा
सेक्शुअल फेवर: 15% ने बोला कि इंटरनेट पर लोगों ने उनसे सेक्शुअल फेवर की मांग की।
सेक्शुअल रिमार्क: 17% ने बोला कि सोशल मीडिया पर उन्होंने सेक्शुअल रिमार्क झेले।
पोर्नोग्राफी: 8.5% को बिना उनकी सहमति पोर्नोग्राफी कंटेंट दिखाया गया।
सेक्शुअल बातें: 13% को सोशल मीडिया पर शारीरिक, शाब्दिक और टेक्स्ट के जरिए यौन उत्पीड़न की बातें कही गईं।
साइबर स्टॉकिंग: 15.% स्टॉकिंग की शिकार हुईं।
हैरासमेंट: 8% ने औनलाइन मैसेज पोस्ट करने पर हैरासमेंट का सामना किया।
रिवेंज पोर्नोग्राफी: 6% ने अपनी तस्वीरें, वीडियो एडल्ट साइट पर पाईं।
डॉक्सिंग: 9% Doxxing की शिकार हुईं। यानी सोशल मीडिया पर बिना उनकी जानकारी के उनके नाम, पता, पेरेंट्स, टेलीफोन नंबर सब डाल दिए गए।
मॉर्फिंग: 8% की सोशल मीडिया से फोटो उठाकर एडिट की गई और इमेज खराब करने के लिए दूसरी स्थान लगाई गई।
भावनात्मक सपोर्ट पाने में विश्वासघात खाती हैं
सरदार पटेल यूनिवर्सिटी जोधपुर के सोशल मीडिया के अध्ययनकर्ताओं का हिस्सा रही असिस्टेंट प्रोफेसर डाक्टर शीतल अरोड़ा कहती हैं कि सोशल मीडिया पर स्त्रियों के टारगेट होने के पीछे मनोवैज्ञानिक कारण भी जिम्मेवार होते हैं।
कॉलेज और यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाली 200 लड़कियों पर किए गए शोध में पता चला कि तनाव, अकेलापन और भावनात्मक सपोर्ट नहीं मिलने के कारण लड़कियां सोशल मीडिया पर धोखेबाजी की शिकार हुईं।
डॉ। शीतल बताती हैं कि लड़कों की तरह लड़कियां भी सोशल मीडिया पर फ्रेंड्स बनाती हैं। लेकिन जब वो तनाव से गुजरती हैं तो सरलता से साइबर क्रिमिनल्स के हत्थे चढ़ जाती हैं।
अकेलापन एक बड़ा फैक्टर है। अकेले होने पर लड़कियां सोशल मीडिया पर दोस्त बनाना चाहती हैं। लेकिन सामने वाले को पहचान नहीं पातीं। इस स्टडी में पता चला कि लाभ उठाने वाले 5% पीड़िता के दोस्त ही थे।
डॉ। अरोड़ा कहती हैं कि महिलाएं वर्चुअल स्पेस में अपने दोस्तों से इमोशनल सपोर्ट चाहती हैं।
एक बार भरोसा जीतने के बाद वर्चुअल फ्रेंड उन्हें अपना शिकार बना लेते हैं। 50% से अधिक सोशल मीडिया पर स्त्री पीड़ितों की उम्र 21 से 24 साल के बीच है जबकि 4% पीड़िताएं 14 से 16 साल की हैं।