लाइफ स्टाइल

बच्चों का मित्र बनकर जीवन में ऐसे भरें मिठास

संचार की प्रक्रिया बच्चे के बचपन में ही प्रारम्भ हो जाती है, जब वह अपने माता-पिता, भाई-बहनों और संबंधियों से संवाद करना प्रारम्भ करता है धीरे-धीरे वह अपने विचारों और सूचनाओं को अपने दोस्तों, शिक्षकों और समाज के अन्य लोगों के साथ साझा करना प्रारम्भ कर देता है अच्छे संचार कौशल हमें जीवन के विभिन्न चरणों में सहायता करते हैं संचार कौशल सीखने से बच्चे न सिर्फ़ अपने विचारों को दूसरों के सामने व्यक्त करना सीखते हैं बल्कि विनम्रता और सम्मान के साथ लोगों की भावनाओं को समझना भी सीखते हैं इससे उनमें सुनना-बोलना, अवलोकन करना, लिखना आदि कौशल भी विकसित होते हैं

पेरेंटिंग रोल मॉडल

जीवन के शुरुआती दिनों में बच्चे अपने माता-पिता की नकल करना प्रारम्भ कर देते हैं इसलिए माता-पिता की वार्ता का बच्चे पर बहुत गहरा असर पड़ता है बच्चे भी अपने संचार के माध्यम के रूप में उन्हीं शब्दों का प्रयोग करने लगते हैं, ठीक वैसे ही जैसे माता-पिता अपने बच्चों के सामने जो शब्द चुनते हैं इसलिए घर में माता-पिता को शब्दों का चयन बहुत सोच-समझकर करना चाहिए उनके पास बहुत समय होता है, जब वे अपने बच्चों के साथ वार्ता कर सकते हैं, जैसे खाना खाते समय, टीवी देखते समय, टहलने जाते समय या बच्चों के साथ कोई खेल खेलते समय इस तरह वे आपको कुछ भी बताने में झिझकेंगे नहीं और विभिन्न पहलुओं पर अपनी राय व्यक्त कर सकेंगे इस प्रक्रिया के दौरान, माता-पिता बच्चों के शब्दों के चयन, बोलने के लहजे आदि का सुझाव दे सकते हैं और उनमें सुधार कर सकते हैं

दूसरों की वार्ता सुनना

दूसरे क्या कह रहे हैं उसे ध्यान से सुनना अच्छे संचार की नींव है इसलिए बच्चों को प्रारम्भ से ही यह सिखाना महत्वपूर्ण है कि वे पहले दूसरों की पूरी वार्ता सुनें और बात समाप्त होने के बाद अपने विचार उनके सामने रखें उन्हें बात करते समय आंखों के संपर्क का महत्व सिखाया जाना चाहिए ऐसा करने से सामने वाले का ध्यान आप पर केंद्रित रहता है

किताबें पढ़ने के लिए प्रेरित हों

किताबें पढ़ने से बच्चा संवाद करने का ठीक तरीका सीखता है जब बच्चा पूरी पुस्तक पढ़ ले तो उससे पुस्तक के बारे में पूछना चाहिए इस तरह वह अपने शब्दों और भावों का ठीक ढंग से इस्तेमाल करना सीख जाता है जब भी बच्चे गलत शब्द बोलें या गलत लहजे में बात करें तो माता-पिता को उन्हें रोकना चाहिए इस तरह उन्हें अपनी गलती का एहसास होगा यदि इन्हें कम उम्र में नहीं सुधारा गया तो बड़े होने पर यह उनकी आदत बन जाएगी आजकल के बच्चे अपने बारे में ही बात करते रहते हैं और दूसरों की बात सुनना कम पसंद करते हैं इसलिए बच्चों को यह समझाना आवश्यक है कि जब तक सामने वाला अपनी बात ख़त्म न कर ले तब तक नहीं कहना चाहिए और दूसरों की बात ख़त्म होने के बाद ही कहना चाहिए

बुरे व्यवहार पर फटकार लगानी चाहिए

बच्चों को भिन्न-भिन्न परिस्थितियों में क्षमा मांगना, आभारी होना, दूसरों की देखभाल करना, बड़ों का सम्मान करना आदि सिखाने के लिए दैनिक जीवन में भिन्न-भिन्न शब्दों को व्यवहार में लाना चाहिए माता-पिता और शिक्षकों की भी जिम्मेदारी बनती है कि वे बच्चों के अच्छे व्यवहार के लिए उनकी प्रशंसा करें और बुरे व्यवहार के लिए उन्हें डांटें इसलिए, हम कह सकते हैं कि यदि माता-पिता और शिक्षक बचपन में रोल मॉडल की किरदार निभाएं और बच्चों को ठीक शब्दों का चयन करके अपने विचारों और भावनाओं को व्यक्त करने का ठीक और उपयोगी तरीका बताएं, तो वे बड़े होकर बेहतर बन सकते हैं नागरिक होने के साथ-साथ सफल लोग

संवाद करने का शिष्टाचार

माता-पिता और शिक्षकों को बच्चों को विनम्रता से कहना और संवाद करना सिखाना चाहिए क्योंकि इससे सामने वाले पर सकारात्मक असर पड़ेगा और वे आपकी बात गंभीरता से सुनेंगे बच्चों को सोच-समझकर कहना और कम शब्दों में कहना सिखाना चाहिए यह भी वार्ता कौशल का एक प्रमुख पहलू है

बोलने की कला का विकास करना

यह माता-पिता और दादा-दादी के लिए छोटे बच्चों को प्रत्येक दिन कहानियाँ सुनाने का एक दिलचस्प तरीका है, जिसके माध्यम से वे उनमें बोलने की कला विकसित कर सकते हैं बच्चों को कहानी सुनाने के बाद कहानी सुनें, ताकि वे भी कहानी को अपने शब्दों में व्यक्त कर सकें ऐसा करके बच्चों को नये शब्द सिखाये जा सकते हैं और अच्छे संस्कार दिये जा सकते हैं

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