जानें कैसे हुई थी छठी मैया की उत्पत्ति…
भागलपुर :- लोक आस्था का महापर्व बोला जाने वाले छठ पूजा की आरंभ 12 अप्रैल से होने जा रही है। चैत्र मास में होने वाली यह चैती छठ काफी मशहूर है। छठ पूजा को प्रकृति का भी पर्व बोला जाता है। इस पर्व में शुद्धता का विशेष ख्याल रखा जाता है। बोला जाता है कि इस दिन मां दुर्गा के छठे रूप की पूजा की जाती है, जिसे षष्टी भी बोला जाता है।
ब्रह्मा जी की मानस पुत्री है छठी मैया
जब इसको लेकर पंडित गुलशन कुमार झा से बात की गई तो उन्होंने मीडिया को कहा कि षष्टी पूजा का सनातन धर्म में विशेष महत्व है। छठी मैया ब्रह्मा जी की मानस पुत्री हैं। ब्रह्मा जी ने दो भागों में इस सृष्टि को बांटा है, जिसमें एक देवसेना और दूसरा प्रकृति के रूप में बांटा गया है। दरअसल ब्रह्मा जी ने जब दो भागों में इस सृष्टि को बांटा था, तो उसमें प्रकृति को पुनः 6 भागों में विभाजित किया था। छठा भाग ही षष्टि के रूप में जाना जाता है, जिसे हम छठी मैया के नाम से जानते हैं। इस पर्व को हम प्रकृति का भी पर्व कहते हैं। इसमें सारे के सारे फल मौसमी फल होते हैं, यानी चैत्र मास में फलने वाले सारे फल इस पूजा में चढ़ाया जा सकता है।
सूर्य ईश्वर को शरीर, तो छठी मैया उनकी बहन
गुलशन झा ने Local 18 को आगे कहा कि सूर्य ईश्वर को शरीर, तो छठी मैया को उनकी बहन माना जाता है। ईश्वर सूर्य को शरीर की उपाधि दी गई है। इसलिए इन्हें शरीर का मालिक भी बोला जाता है। यदि कोई आदमी सूर्य ईश्वर की आराधना करे, तो शारीरिक कष्ट से वह मुक्ति जरूर पा लेगा। वहीं छठी मैया की पूजा करने से संतान की प्राप्ति होती है। उन्होंने बोला कि जो इस पूजा में अर्घ्य भी देते हैं, तो वह पुण्य के भागी बनते हैं। यह एक ऐसी पूजा है जिसमें ईश्वर सूर्य के दोनों रूप यानी उगते हुए और डूबते हुए सूर्य को पूजा जाता है, जिसका फल काफी अच्छा मिलता है।