आइए जानते हैं, पापमोचिनी एकादशी की डेट, व्रत पूजा-विधि, शुभ मुहूर्त
चैत्र मास की एकादशी का हिंदू धर्म में बहुत खास माना जाता है. इसे पापमोचिनी एकादशी कहते हैं. मान्यता है कि पापमोचिनी एकादशी व्रत के असर से भक्त के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं. एकादशी तिथि ईश्वर विष्णु को समर्पित होती है, ऐसे में इस दिन ईश्वर विष्णु की विधि-विधान से पूजा की जाती है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पापमोचिनी एकादशी का महत्व स्वयं ईश्वर श्रीकृ्ष्ण ने अर्जुन को कहा था. ईश्वर श्रीकृष्ण कहते हैं कि जो आदमी इस व्रत को रखता है, उसके समस्त पाप समाप्त हो जाते हैं और अंत में मोक्ष की प्राप्ति होती है. मान्यता है कि एकादशी व्रत को विधि-विधान से रखने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं. आइए जानते हैं पापमोचिनी एकादशी की डेट, व्रत पूजा-विधि, शुभ मुहूर्त, पारणा टाइम और पूजन सामग्री लिस्ट-
मुहूर्त-
- एकादशी तिथि शुरू – अप्रैल 04, 2024 को 04:14 पी एम बजे
- एकादशी तिथि खत्म – अप्रैल 05, 2024 को 01:28 पी एम बजे
पारणा टाइम-
- पारण (व्रत तोड़ने का) समय – 6 अप्रैल को, 06:14 ए एम से 08:44 ए एम तक
- पारण तिथि के दिन द्वादशी खत्म होने का समय – 10:19 ए एम
पूजा- विधि-
- सुबह शीघ्र उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं.
- घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें.
- भगवान विष्णु का गंगा जल से अभिषेक करें.
- भगवान विष्णु को पुष्प और तुलसी दल अर्पित करें.
- अगर संभव हो तो इस दिन व्रत भी रखें.
- भगवान की आरती करें.
- भगवान को भोग लगाएं. इस बात का विशेष ध्यान रखें कि ईश्वर को केवल सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है. ईश्वर विष्णु के भोग में तुलसी को जरूर शामिल करें. ऐसा माना जाता है कि बिना तुलसी के ईश्वर विष्णु भोग ग्रहण नहीं करते हैं.
- इस पावन दिन ईश्वर विष्णु के साथ ही माता लक्ष्मी की पूजा भी करें.
- इस दिन ईश्वर का अधिक से अधिक ध्यान करें.
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एकादशी व्रत पूजा सामग्री लिस्ट
- श्री विष्णु जी का चित्र अथवा मूर्ति
- पुष्प
- नारियल
- सुपारी
- फल
- लौंग
- धूप
- दीप
- घी
- पंचामृत
- अक्षत
- तुलसी दल
- चंदन
- मिष्ठान
पापमोचिनी एकादशी व्रत कथा- शास्त्रों में वर्णित है कि ईश्वर कृष्ण ने स्वंय पांडु पुत्र अर्जुन को पापमोचिनी एकादशी व्रत का महत्व कहा था. बोला जाता है राजा मांधाता ने लोमश ऋषि से जब पूछा कि अनजाने में हुए पापों से मुक्ति कैसे हासिल की जाती है? तब लोमश ऋषि ने पापमोचनी एकादशी व्रत का जिक्र करते हुए राजा को एक पौराणिक कथा सुनाई थी. कथा के अनुसार, एक बार च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी वन में तपस्या कर रहे थे. उस समय मंजुघोषा नाम की अप्सरा वहां से गुजर रही थी. तभी उस अप्सरा की नजर मेधावी पर पड़ी और वह मेधावी पर मोहित हो गईं. इसके बाद अप्सरा ने मेधावी को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए ढेरों जतन किए.
मंजुघोषा को ऐसा करते देख कामदेव भी उनकी सहायता करने के लिए आ गए. इसके बाद मेधावी मंजुघोषा की ओर आकर्षित हो गए और वह ईश्वर शिव की तपस्या करना ही भूल गए. समय बीतने के बाद मेधावी को जब अपनी गलती का एहसास हुआ तो उन्होंने मंजुघोषा को गुनेहगार मानते हुए उन्हें पिशाचिनी होने का श्राप दे दिया. जिससे अप्सरा बहुत ही दुखी हुई.
अप्सरा ने तुरंत अपनी गलती की क्षमा मांगी. अप्सरा की क्षमा याचना सुनकर मेधावी ने मंजुघोषा को चैत्र मास की पापमोचनी एकादशी के बारे में बताया. मंजुघोषा ने मेधावी के कहे मुताबिक विधिपूर्वक पापमोचनी एकादशी का व्रत किया. पापमोचिनी एकादशी व्रत के पुण्य असर से उसे सभी पापों से मुक्ति मिल गई. इस व्रत के असर से मंजुघोषा फिर से अप्सरा बन गई और स्वर्ग में वापस चली गई. मंजुघोषा के बाद मेधावी ने भी पापमोचनी एकादशी का व्रत किया और अपने पापों को दूर कर अपना खोया हुआ तेज पाया था.