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पुलिस हिरासत और न्यायिक हिरासत में क्या अंतर है, जानिए सही जवाब

कई बार आपने सुना होगा क‍ि फलां को पुल‍िस ह‍िरासत में भेज दिया गया फलां को न्यायालय ने न्‍यायिक हिरासत में भेज दिया सुनने में दोनों शब्‍द कई बार एक जैसे लगते हैं ऐसे में औनलाइन प्‍लेटफार्म कोरा पर एक यूजर ने यही प्रश्न पूछा कि पुलिस हिरासत और न्यायिक हिरासत में क्या अंतर है? कई लोगों ने अपनी-अपनी जानकारी के ह‍िसाब से उत्तर दिया लेकिन सच क्‍या है अनिमेष कुमार सिन्हा नाम के एक यूजर ने इसे आसान शब्‍दों में समझाया है

पहली बात, पुलिस हिरासत में आदमी लॉकअप में रहता है जो पुलिस पुलिस स्टेशन में बने होते हैं जैसा आप फिल्मों में देखते हैं, जबकि न्यायिक हिरासत में आदमी कारावास में रहता है पुलिस हिरासत में पुलिस कभी भी उस शख्‍स से पूछताछ कर सकती है लेकिन जब वह शख्‍स न्यायिक हिरासत में रहता है तो पुलिस जब मर्ज़ी तब पूछताछ नहीं कर सकती पूछताछ करने के लिए पुलिस को कोर्ट की इजाजत लेनी पड़ती है पुलिस हिरासत की अवधि सामान्य तौर पर 24 घंटे तक होती है यानी यदि पुल‍िस क‍िसी को अपने साथ ले जाती है तो केवल 24 घंटे अपने पास रख सकती है और वह भी सीनियर पुल‍िस अध‍िकारी के आदेश से ही संभव है इसके बाद जरूरी रूप से मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना पड़ता है मज‍िस्‍ट्रेट चाहे तो पुलिस हिरासत की अवधि बढ़ा सकता है

ट्रांजिट रिमांड का क्‍या मतलब
अगर मजिस्ट्रेट के सामने पेश करने में देर होने की आसार है, तो उसके लिए अलग नियम है जैसे कि कोई आदमी दिल्ली में मुंबई पुलिस द्वारा अरैस्ट किया जाए और मुंबई पहुचने में 2 दिन लगेंगे तो आरोपी को दिल्ली में ही मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना होगा वहां से ट्रांजिट रिमांड ली जाती है उसी तरह यदि कोर्ट 4–5 दिनों के लिए बंद है तो आरोपी को मजिस्ट्रेट के घर पेश किया जाता है

कब दी जाती न्‍यायिक हिरासत
पुलिस हिरासत तब दी जाती है जब जांच में सतत आरोपी के उपस्थिति की आवश्यकता हो जैसे साक्ष्य की तलाश या confronted इन्क्वारी आदि करना हो न्यायिक हिरासत तब दी जाती है जब इन सबकी आवश्यकता न हो, लेकिन जांच प्रभावित न हो इसलिए हिरासत में रखना महत्वपूर्ण हो यह उन्‍हीं मामलों में किया जाता है, जिसमें अपराध संगीन नजर आए और प्रथम दृष्टया आरोपी की संलिप्तता दिखाई देती हो

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