ओबीसी समाज से आने वाले छगन भुजबल जैसे नेता ने मोर्चा खोला
महाराष्ट्र में मराठा कोटे को लेकर जंग जारी है। आंदोलन के नेता मनोज जारांगे पाटिल ने 2 जनवरी तक का अल्टिमेटम देकर पिछले दिनों भूख स्ट्राइक समाप्त की थी, लेकिन इसका कोई हल निकलता नहीं दिख रहा है। एक तरफ मराठाओं का बोलना है कि समाज के सभी लोगों को कोटा दिया जाए। गवर्नमेंट इनमें से एक वर्ग को कुनबी जाति का सर्टिफिकेट दे भी रही है, जो ओबीसी जाति का हिस्सा है। लेकिन इसका भी विरोध प्रारम्भ हो गया है। ओबीसी समाज से आने वाले छगन भुजबल जैसे नेता ने मोर्चा खोल दिया है और 17 नवंबर को जालना में रैली भी की थी। कांग्रेस पार्टी के पिछड़े नेता भी उनके साथ दिख रहे हैं।
इस तरह मराठे राजी नहीं हैं और उससे पहले ही ओबीसी के रूठने का खतरा पैदा हो गया है। यही नहीं एकनाथ शिंदे की अनेक कोशिशों के बाद भी ऐसा लगता है कि जनवरी में मराठा आंदोलन सड़कों पर आ सकता है। सीएम एकनाथ शिंदे के आगे बड़ा संकट यह है कि गवर्नमेंट में डिप्टी मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार दूरी बनाते दिख रहे हैं। देवेंद्र फडणवीस तो मराठा आंदोलन के दौरान हुई अत्याचार पर ऐक्शन की बात कहकर ही घिर गए थे। तब से ही उन्होंने दूरी बना रखी है। इसके अतिरिक्त अजित पवार भी कुछ कहने से बच रहे हैं।
ऐसी स्थिति में एकनाथ शिंदे आरक्षण के मसले पर अकेड़े पड़ते दिख रहे हैं। एक संकट यह है कि धनगर समुदाय भी कोटे की मांग कर रहा है। इस समुदाय की संख्या मराठाओं की तरह अधिक नहीं है, लेकिन ग्रामीण महाराष्ट्र में इनका बड़ा असर है और वे समीकरण बिगाड़ने का दम तो रखते ही हैं। जालना में मराठा आंदोलनकारियों पर लाठीचार्ज हुआ था और इस पर होम मिनिस्टर होने के नाते फडणवीस घिर गए थे। तब से ही वह इस मसले से दूरी बनाए बैठे हैं और बैकसीट पर हैं। अजित पवार की नाराजगी के ही चर्चे हैं।
अब एकनाथ शिंदे ही अकेले बचे हैं, जिन्हें गवर्नमेंट भी चलानी है और भिन्न-भिन्न समुदायों के आंदोलन से भी निपटना है। इस बीच लोकसभा चुनाव से पहले कराए गए सर्वे भी एकनाथ शिंदे की टेंशन बढ़ा रहे हैं। सर्वे के अनुसार मराठे कांग्रेस पार्टी और एनसीपी के साथ जाते दिख रहे हैं, जबकि बीजेपी और उद्धव गुट की शिवसेना के पाले में ओबीसी जा सकते हैं। इस तरह एकनाथ शिंदे खाली हाथ रहने के रिस्क पर हैं। हाल ही में ग्राम पंचायत के चुनावों में भी पता चला था कि अजित पवार गुट मजबूत है।