बर्दवान/पानागढ़ : इस जिले में फसलों का हुआ भारी नुकसान
बर्दवान/पानागढ़ : चक्रवात मिचौंग के आंध्र प्रदेश पहुंचने के साथ ही पूर्व बर्दवान में भी लगातार बारिश हो रही है। फलस्वरूप कृषि की दृष्टि से जरूरी इस जिले में फसलों का भारी हानि हुआ है। ज्यादातर खेतों में तैयार धान काट कर सूखने के लिए रखा है। वहीं, आलू की बुआई के समय किसानों पर असामयिक बारिश की मार पड़ी है। कई स्थान खेतिहर भूमि बरसात के पानी में डूब गयी है। धान कटाई के मौसम में ऐसी आपदा से जिले के किसान दुविधा में पड़़ गये हैं। अधिकतर भूमि पर धान ही बचा है।
किसानों ने बोला कि धान बचा कर घर ले जाना संभव नहीं है। पानी में डूबे धान के पौधों के सड़ने की संभावना है। वहीं, खेत में बोये गये आलू के बीज अब काम नहीं आयेंगे। नये आलू बोना भी संभव नहीं रहा। जलमग्न खेत में आलू नहीं बोये जा सकते। मिचौंग के असर से पूर्व बर्दवान के लगभग सभी ब्लॉकों में बुधवार सुबह से लगातार बारिश हो रही थी। जिले में बुधवार दोपहर से लगातार बारिश हुई है। बंगाल में ‘धान का कटोरा’ कहे जानेवाले पूर्व बर्दवान जिले के सभी हिस्सों में इस समय धान की कटाई और मड़ाई की जाती है। यह कार्य पौष के मध्य तक चलता है। लेकिन लगातार हो रही बारिश के बीच धान काटने का काम बंद हो गया है, धान के अनेक पौधे पानी से भीग गये हैं और कई तो पूरी तरह डूब गये हैं।
मालूम रहे कि बारिश से पहले इस जिले में कुल भूमि के मात्र 20 प्रतिशत हिस्से पर ही पका धान काट कर किसान घर पहुंचा पाये थे। जबकि शेष भूमि का लगभग 80 फीसदी भाग अमन धान खेत में ही पड़ा रह गया। बरसात के पानी मिले कीचड़ में डूबे धान को बाहर निकालना संभव नहीं है। कटा धान खेत में उपस्थित रहने के कारण वो भी पूरी तरह से पानी में डूब गया है। किसानों ने बोला कि यह धान अब किसी काम का नहीं रहा। ज्यादातर मामलों में पानी में भीगे धान अंकुरित हो जायेंगे। भीगा धान नहीं बिकेगा। बोला जा रहा है कि धान की खेती करनेवाले किसानों को हजारों, लाखों रुपये का हानि होनेवाला है।
कुछ दिन पहले निम्म दबाव से बारिश की पूर्व चेतावनी के बावजूद किसान शीघ्र धान की कटाई नहीं कर पाये थे। कृषि मजदूरों की कमी कई स्थानों पर परेशानी बन कर सामने आयी है। पूर्व बर्दवान के अधिकांश छोटे किसानों ने अमन धान की खेती लिए कर्ज लिया था। लेकिन धान की फसल का हानि होने से किसानों के सर पर ऋण का बोझ मंडरा रहा है। इसे लेकर किसानों की चिंता बढ़ती जा रही है। अलबत्ता, बर्दवान के कालना, मेमारी, जमालपुर क्षेत्रों में अधिकतर भूमि पर आलू की खेती की जाती है। उन इलाकों में धान की कटाई का काम पहले ही हो चुका है। धान की क्षति को कुछ हद तक रोक लिया गया है, लेकिन आलू की खेती के सीजन में उन्हें विशाल हानि उठाना पड़ा है। ऐसे हानि से बचाने या क्षतिपूर्ति का कोई कवर उनके पास नहीं है।
इस बीच, जिले के उन इलाकों में जमीन तैयार हो गयी और आलू बोने का काम जोरों पर चल रहा था। लेकिन बीच में असमय बारिश होने से आलू के बीज के सड़ने की संभावना भी है। आसमान में बादल छाये रहने और लगभग 48 घंटों तक लगातार बारिश होने का मतलब है कि आलू की खेती के लिए उपयुक्त भूमि ना रह जाना। किसानों का दावा है कि आलू के बोये गये बीज खेत में ही सड़ जायेंगे। नतीजतन, एक ओर आलू की खेती और दूसरी तरफ धान की बर्बादी ने पूर्व बर्दवान के किसान परिवारों के सामने नई कठिन पैदा कर दी है। कृषि विभाग के मुताबिक पूर्व बर्दवान में करीब 72 हजार हेक्टेयर में आलू की खेती होती है।
अधिकांश भूमि पर पानी भर जाने से आलू की नई बुआई भी थम जायेगी और जिन इलाकों में आलू बोया गया है, वहां बीज अब उपयोगी नहीं रहेंगे। इसलिए भूमि में पानी कम होने के बाद यदि आप बीज खरीद कर नये सिरे से खेती करते हैं, तो लागत इतनी अधिक होगी कि फायदा कृषकों के लिए देख पाना कठिन है। यदि नई खेती प्रारम्भ की जाये, तो काफी देरी हो जायेगी और नतीजा यह होगा कि यदि अंत में ठंड नहीं पड़ी, तो पैदावार में भारी हानि होने की संभावना रहेगी।