‘हाईवे टू स्वदेस’ पुस्तक की लेखिका भैरवी जानी कई युवाओं के लिए बनी प्रेरणा

आज मुलाकात एक बिजनेस वुमन से करते हैं. जिनमें राष्ट्र और समाज के लिए कुछ करने का जज्बा है और इसी जज्बे ने उन्हें हिंदुस्तान भ्रमण के लिए प्रेरित किया. जब वह अपनी इस यात्रा पर निकलीं तो धीरे-धीरे उनका राष्ट्र और दुनिया को देखने का नजरिया ही बदल गया.
उनकी मुलाकात हुई राष्ट्र की ऐसी आम लेकिन खास स्त्रियों से जिनके बारे में बात नहीं होती. उन्होंने अपनी पुस्तक ‘हाईवे टू स्वदेस’ में पाठकों को ऐसे 12 सुपर पावर्स से मिलवाया गया है, जो उन्हें पसंद तो आ ही रहे हैं, साथ ही पाठकों की जीवन भी बदल रहे हैं.
हम बात कर रहे हैं लॉजिस्टिक्स एंड सप्लाई चेन का बिजनेस करने वाली बिजनेस वुमन और ‘हाईवे टू स्वदेस’ पुस्तक की लेखिका भैरवी जानी की, जिनकी लेखनी आज कई युवाओं के लिए प्रेरणा बन गई है. भैरवी हिंदुस्तान घूमने के दौरान जिन स्त्रियों से अधिक प्रभावित हुईं, वो बहुत साधारण हैं, लेकिन उनका काम असाधारण है. सबसे पहले इनमें से 4 स्त्रियों की कहानी भैरवी से जान लेते हैं.
बंगाल की महिलाएं, जो विद्यालय नहीं गई, पर रखती हैं पैसों का रखरखाव
हम लोग घूमने के दौरान पश्चिम बंगाल में संथाल जनजाति की स्त्रियों के एक समूह से मिले. गांव में बहुत गरीबी है. इन्हें मिलने वाली स्वास्थ्य सेवाएं दूर हैं और इनके लिए महंगी भी हैं. ऐसे में यहां स्त्रियों का समूह पैसे इकट्ठा करता है. ये महिलाएं ही तय करती हैं कि जमा रकम का इस्तेमाल केवल स्वास्थ्य सेवा के लिए ही किया जाएगा. ये कभी विद्यालय नहीं गईं, लेकिन स्वास्थ्य और पैसे का रख रखाव करना बहुत अच्छी तरह जानती हैं.
एशिया का बड़ा बाजार चलाती हैं महिलाएं
मणिपुर के इंफाल का पूरा बाजार महिलाएं चलाती हैं. यहां पुरुष देखने को नहीं मिलते. यह बाजार एशिया के बड़े मार्केट्स में से एक माना जाता है. इस बाजार की बिजनेस वुमेन करंट अफेयर्स से लेकर राजनीति तक हर मामले पर चर्चा करती हैं. यहां घरेलू सामान से लेकर हस्तशिल्प तक सब कुछ मिलता है.
भारत भ्रमण के दौरान भैरवी जानी ने महसूस किया कि महिलाएं राष्ट्र चला रही हैं
तिरुपति की 65 वर्ष की स्त्री मर्दों को देती है काम
तिरुपति में मुझे एक 65 वर्ष की बुजुर्ग स्त्री मिलीं. वो वहां पर भोजनालय चलाती हैं. जब मैंने उनसे पूछा कि आपको काम करने की क्या जरूरत, आपके लिए गवर्नमेंट की कई योजनाएं हैं, तो उन्होंने कहा, मुझे उसकी आवश्यकता नहीं. जब मैंने उनसे पूछा कि आपने केवल मर्दों को काम पर रखा है स्त्रियों को क्यों नहीं, तो स्त्री ने कहा, मर्दों को भी काम की आवश्यकता है.
यहां के शिव मंदिर की मुख्य पुजारी महिला
हिमाचल प्रदेश के मंडी में मुझे एक 40-50 वर्ष की एक स्त्री मिली, वो वहां के शिव मंदिर की प्रमुख पंडिताइन हैं. उन्होंने बताया कि मंडी में कई महिलाएं पंडित हैं. ऐसे अनऑर्गनाइज्ड सेक्टर की कहनियां बाहर नहीं आतीं इसलिए स्त्रियों के काम को वो अहमियत नहीं मिलती जो मिलनी चाहिए.
मैं राष्ट्र को करीब से देखना चाहती थी
मैं ‘इंडिया @75 चैरिटेबल फाउंडेशन’ से जुड़ी. 2012 में जब मेरा काम पूरा हुआ, तो मैंने सोचा कि मैं अपने काम के अतिरिक्त समाज, राष्ट्र के लिए और क्या कर सकती हूं. मैं बिजनेस के फील्ड से हूं तो मुझे उसी तरह का आइडिया आया. शहरों में बिजनेस करने वाले क्या सोचते हैं ये मैं जानती थी, अब मैं ये जानना चाहती थी कि ग्रामीण क्षेत्रों में बिजनेस करने वालों की सोच क्या है, जरूरतें क्या हैं.
मेरे एक बहुत अच्छे दोस्त हैं महेश श्रीराम, वो चेन्नई से हैं और इनोवेशन एक्सपर्ट हैं. वो काफी ट्रैवल करते हैं. 2014 में हमारे मन में ये ख्याल आया कि क्यों न साथ मिलकर देशभर में ट्रैवल करें और अपना ब्लॉग लिखें. इस तरह हम चार लोग एक गाड़ी में राष्ट्र घूमने निकल पड़े.
ए आर रहमान ने रखा प्रोजेक्ट का नाम
हम ‘लीप’ संस्था के लिए काम करते हैं जो बच्चों को म्यूजिक सिखाती है. इस संस्था के मार्गदर्शक हैं एआर रहमान. उन्होंने पूछा कि आप अपने प्रोजेक्ट का नाम क्या रखेंगे. हमने कहा, नाम तो सोचा ही नहीं. उसी दौरान रहमान की ‘हाईवे’ फिल्म रिलीज हुई थी, तो उन्होंने कहा, तुम अपने इस प्रोजेक्ट का नाम ‘हाईवे टू स्वदेस’ रखो. इस तरह हमारी ट्रिप का नाम रहमान के सुझाव पर ‘हाईवे टू स्वदेस’ पड़ा.
19 हजार से अधिक मातृभाषाएं, फिर भी हम आपस में जुड़े
मैं पहले भी बहुत घूमी थी, लेकिन उस यात्रा में जो पूरे राष्ट्र को एक साथ देखने का मौका मिला उसका अनुभव बहुत अलग ही रहा. उससे मेरा नजरिया बदला और ठीक अर्थ में समझ में आया कि हमारे राष्ट्र के लिए ‘विविधता में एकता’ की बात क्यों की जाती है. वो कौन से मूल्य और संस्कार हैं जो हम सबको एक सूत्र में जोड़ते हैं. हमारे यहां 19,500 मातृभाषाएं हैं. लोगों के धर्म, भाषा, खानपान, रहन-सहन एकदम अलग हैं, फिर ऐसी कौन सी चीज कि हम सभी आपस में जुड़े हैं. दरअसल, हम सबका दुनिया को देखने का नजरिया एक जैसा है, हमारे संस्कार हमें एक-दूसरे से जोड़ते हैं. इसीलिए हमारा राष्ट्र भारत कहलाता है. विविधता हमारे खून में है.
मैं अपनी बात बोलना चाहती थी
मैं अपनी बात लोगों के सामने रखना चाहती थी. पहले मैंने सोचा ब्लॉग लिखकर यात्रा का अपना अनुभव साझा करूं. फिर लगा इस पर पुस्तक लिखी जानी चाहिए. ‘हाईवे टू स्वदेस- रीडिस्कवरिंग इंडियाज सुपर पावर्स’ पुस्तक मैंने कोविड टाइम में लिखी. मुझे खुशी है कि मेरी बात लोगों तक पहुंच रही है. मैं चाहती थी कि मेरी पुस्तक पढ़ने के बाद लोगों में अपना काम प्रारम्भ करने की हौसला आए और मैं अपनी इस प्रयास में सफल रही. आज मेरी बात लोगों तक पहुंची है और लोगों को अपना बिजनेस करने के लिए प्रेरित कर रही है.
ऐसे जुड़ता है देश
छोटे-छोटे गांव-कस्बों में जाकर पता चलता है कि हमारे राष्ट्र के छोटे से छोटा बिजनेसमैन ही हमारे सुपर पावर हैं. बड़े से लेकर छोटे-छोटे उद्यमी भी राष्ट्र को सुपर पावर बना रहे हैं. हमारा व्यापार फिर चाहे वो खेती हो, फूड हो, आर्ट, क्राफ्ट सदियों से पूरे विश्व में अपनी पहचान बनाए हुए है. गांव-देहात में व्यापार करने वाले लोगों को ये विधा किसी विद्यालय या इंस्टीटयूट ने नहीं सिखाई है, उद्यम की ये कला हममें रची बसी हुई है. हमारा व्यवसाय, हमारा व्यापार हमें जोड़ता है.
व्यापार की बात होनी चाहिए
छोटे व्यापारी जो राष्ट्र का नक्शा बदल रहे हैं, उनका जिक्र होना चाहिए ताकि युवाओं को इससे प्रेरणा मिले. 26-27 वर्ष का एक युवा यदि 30-35 कंपनियां चला रहा है तो उसकी बात होनी चाहिए. इससे अन्य लोग भी व्यापार को बढ़ावा देंगे और राष्ट्र आगे बढ़ेगा.
महिलाएं राष्ट्र चला रही हैं
मुझे लगता है कि राष्ट्र का कोई भी क्षेत्र स्त्रियों के इस सहयोग से अछूता हो. ठीक अर्थ में महिलाएं ही राष्ट्र चला रही हैं. बिजनेस के क्षेत्र में भी महिलाएं तेजी से आगे आ रही हैं. अफसोस की बात ये है कि राष्ट्र के विकास की बात करते समय हम गांव-कस्बे, आदिवासी क्षेत्र की उन स्त्रियों का जिक्र करना भूल जाते हैं जो घर संभालने के साथ-साथ खेती, आर्ट, क्राफ्ट, फूड आइटम्स, आंगनवाड़ी जैसे कई क्षेत्रों में काम करते हुए राष्ट्र की जीडीपी बढ़ाने में अपना सहयोग दे रही हैं.
भैरवी मानती हैं कि हिंदुस्तान को समझने के लिए राष्ट्र भ्रमण महत्वपूर्ण है
स्टोरी में आगे बढ़ने से पहले पोल पर अपनी राय देते चलें…
किताब लिखने की शुरुआत
मैंने पुस्तक के लिए 100 पेज का प्रपोजल लिखा और तीन प्रकाशकों को भेजा. सभी का अच्छा रिस्पांस आया, जिससे मेरा हौसला बढ़ा और मैंने पुस्तक पर काम करना प्रारम्भ कर दिया. जब लॉकडाउन हुआ, उस समय हम उत्तराखंड के मुनस्यारी में थे. लॉकडाउन की वजह से कहीं आ जा नहीं सकते थे इसलिए मैं रिसर्च के मुद्दे में किसी लाइब्रेरी में नहीं जा पाई. मेरे पास मेरी ट्रैवल डायरी और औनलाइन रिसर्च दो ही माध्यम थे, उन्हीं की सहायता से मैंने पुस्तक लिखी. औनलाइन सोर्स पर पूरा विश्वास नहीं कर सकते, इसलिए मुझे एक जानकारी के लिए कई ढंग तलाशने पड़ते. लेकिन, मुझे अपने अनुभवों को पुस्तक की शक्ल में लिखने में मजा आ रहा था.
किताब लिखने के दौरान मैंने महसूस किया कि हमारे राष्ट्र में रिसर्च पर बहुत काम हो रहा है. लेकिन कई पहलू हैं जो अब भी अछूते हैं. राष्ट्र के छोटे उद्यमियों के सहयोग पर ठीक रिसर्च नहीं हो पाई है, इस पर और काम किया जा सकता है.
भारत के सुपर पावर को पहचानें
व्यापार ही हमारा सुपर पावर है. इसे किस तरह और आगे बढ़ाया जाना चाहिए, यही मैंने अपनी पुस्तक में बताने की प्रयास की है. 12 सुपर पावर वर हैं- आंत्रप्रेन्योरशिप, नेचर, क्रिएटिविटी, हेरिटेज, नॉलेज, फूड, वेलनेस, ब्यूटी, असिमिलेशन, इंक्लूजन, इंडिविजुअल और कम्युनिटी. इन पावर्स पर पहले भी बात हुई है, लेकिन हमने इन्हें नजरअंदाज कर दिया.
इस पुस्तक में राष्ट्र के रिमोट एरिया के कई ऐसे भारतीयों, ऑर्गेनाइजेशन और कम्युनिटीज की कहानियां हैं जो इन सुपर पावर्स का बहुत अच्छी तरह से उपयोग कर रहे हैं. यही इसकी सफलता का राज भी है. मैंने पुस्तक में कई सुझाव भी दिए हैं कि इन सुपर पावर्स का उपयोग करके हम किस तरह नए हिंदुस्तान की परिकल्पना कर सकते हैं. मैं चाहती हूं अधिक से अधिक लोग इन सुपर पावर्स को पहचानें और राष्ट्र को और आगे बढ़ाएं.
भैरवी चाहती हैं कि राष्ट्र को आगे बढ़ा रही स्त्रियों की बात दुनिया तक पहुंचे
फैमिली का पूरा साथ मिला
मेरी मां चिकित्सक हैं और पापा बिजनेसमैन. मैं लकी हूं कि मुझे और मेरी बहन को लड़की होने की वजह से कभी किसी काम के लिए रोका नहीं गया. मेरी पढ़ाई मुंबई में हुई. फिर आगे की पढ़ाई के लिए मैं अमेरिका और लंदन में रही. वहां पढ़ाई के साथ काम करना भी प्रारम्भ किया. सबकुछ अच्छा चल रहा था, लेकिन मुझे अपने राष्ट्र वापस आना था. मेरे मन में ये बात हमेशा रही कि अपने काम के अतिरिक्त राष्ट्र और समाज के लिए कुछ करना चाहिए.
मैंने फैमिली बिजनेस को जॉइन करने के बजाय पहले अपना काम करना प्रारम्भ किया. इससे मुझे कॉन्फिडेंस बढ़ा और सफलता भी मिली. विवाह के बाद भी मेरा काम पहले की तरह ही जारी है, क्योंकि पति का पूरा सपोर्ट है. आज मुझे इस बात की बहुत खुशी है कि मेरी पुस्तक लोगों को राष्ट्र के लिए सहयोग करने का हौसला दे रही है.