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‘मिशन 400 पार’: नरेंद्र मोदी का यह मिशन क्या होगा कामयाब, जानिए यहां

  लगातार तीसरी बार एनडीए को 400 से भी अधिक

लोकसभा सीटों के साथ केंद्र की सत्ता में लाने में जुटे प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी का यह मिशन क्या सफल होगा? क्या बीजेपी आनें वाले लोकसभा
चुनावों के बाद 370 के निर्धारित लक्ष्य को हासिल कर पाएगी? क्या विपक्षी
गठबंधन मोदी लहर के समक्ष टिक भी पाएगा? कांग्रेस पार्टी नेता राहुल गांधी
की ‘भारत जोड़ो इन्साफ यात्रा’ क्या विपक्ष के लिए वोट जुटा पाएगी? दक्षिणी
सूबों में क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन के बाद बीजेपी का कमल वहां कितना
खिलेगा? ऐसे ही कई अहम प्रश्नों पर हिंदुस्तान की सर्वाधिक विश्वसनीय चुनाव सर्वे
एजेंसी एक्सिस माई इण्डिया के चेयरमैन और व्यवस्था निदेशक प्रदीप गुप्ता ने
आईएएनएस के साथ वार्ता की इस विशेष इंटरव्यू में उन्होंने पूरी तस्वीर
खींचकर समझाया कि एनडीए सत्ता में किस तरह से लौट सकती है उन्होंने इस पर
भी स्पष्टता से कहा कि क्या‍ एनडीए 400 पार का लक्ष्य पूरा कर लेगा?प्रदीप
गुप्ता ने कहा कि एनडीए की 400 पार सीटें जीतने की जो सोच है तो इसमें
एक बात तो साफ है कि वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी नीत इस गठबंधन ने
352 सीटें जीती थीं इसका मतलब यह है कि उन्हें 48 सीटें और चाहिए एनडीए
को अपनी 400 सीटें जीतने की कल्पना को छूने के लिए कुछ बातें महत्वपूर्ण
हैं एनडीए ने पिछले लोकसभा चुनाव में 352 सीटें जिन-जिन राज्यों से जीती
थी, उसको बनाए रखना बहुत महत्वपूर्ण होगा, यदि उसमें कमी होगी तो बीजेपी को
दिक्कत हो सकती हैउन्होंने बताया, “मैं हमेशा से इसको तीन ग्रुप
में बांट के देखता हूं एक ग्रुप वह है, जहां पर भाजपा ने 257 सीटों में से
238 सीटें जीती यानी सिर्फ़ 19 सीटें विपक्षी पार्टियों ने जीतीं इनमें
सबसे प्रमुख महाराष्ट्र और बिहार हैं जहां पर परिदृश्य काफी कुछ बदला है,
पिछले लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र में शिवसेना और बीजेपी ने मिलकर चुनाव
लड़ा था लेकिन, अब दोनों अलग हो गए हैं वहीं, एनसीपी और कांग्रेस पार्टी ने साथ
मिलकर चुनाव लड़ा था लेकिन, अब एनसीपी और शिवसेना का बंटवारा हुआ है जो कि
दो हिस्से के रूप में बीजेपी और एनडीए के साथ आए हैं ऐसे में महाराष्ट्र
एनडीए के लिए काफी अहम राज्य है

 

 

“उन्होंने आगे कहा कि बिहार में
नीतीश कुमार महागठबंधन में गए और फिर वापस एनडीए में शामिल हो गए बिहार
में बोला जा सकता है कि स्थिति गठबंधन के लिहाज से करीब-करीब वही है पिछले 5
सालों में तेजस्वी यादव की लोकप्रियता में बढ़ोत्तरी हुआ है और वो हमने
विधानसभा चुनाव में भी देखा था, यह बोला जा सकता है कि 2020 में हुए
विधानसभा चुनाव में लगभग उन्होंने बीजेपी और जेडीयू को कड़ी भिड़न्त दी थी
भाजपा थोड़े से मार्जिन से चुनाव जीत पाई थी ऐसे में बिहार-महाराष्ट्र इन
राज्यों की श्रेणी में जरूरी हैं इसके अतिरिक्त कर्नाटक भी महत्वपूर्ण
राज्य है जहां पर पिछले वर्ष विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने अच्छी खासी
जीत हासिल की और बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा थाउन्होंने
आंकड़ों को रखते हुए कहा कि पिछली बार लोकसभा चुनाव में कर्नाटक में 28
सीटों में से बीजेपी ने अकेले 25 सीट जीती और एक निर्दलीय उम्मीदवार का भी
भाजपा को सीट समर्थन मिला था जबकि, कांग्रेस पार्टी और जेडीएस को गठबंधन के
बावजूद एक-एक सीट पर जीत मिली थी तो, एक राज्य कर्नाटक, यह बात हो गई एक
श्रेणी की जिसके अंदर एनडीए का प्रदर्शन चरम सीमा पर था वहां पर अब बढ़ने
की आशा बहुत कम है देखना यह होगा यदि सीटें घटती हैं तो कितना कम होती
हैं इनमें सभी तरह के राज्य आ जाते हैं, जिनमें गुजरात, राजस्थान, मध्य
प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार और
कर्नाटक हैंउन्होंने आगे कहा कि दूसरी श्रेणी में वह राज्य हैं,
जहां ‘कभी खुशी कभी गम’ जैसी स्थिति थी बीजेपी ने बहुत अच्छा किया लेकिन,
उसे और अधिक अच्छा करने की आवश्यकता है इस द्वितीय श्रेणी के अंदर पश्चिम
बंगाल की 42 सीटों में से 18 सीटों पर बीजेपी को जीत हासिल हुई वहां पर 24
सीटों की कमी है, जिसमें से 23 सीटें तृण मूल काँग्रेस ने और एक सीट कांग्रेस पार्टी ने
पिछली बार जीती थी इसी श्रेणी में यूपी भी है“उत्तर
प्रदेश की 80 सीटों में से एनडीए ने 64 सीटों पर जीत हासिल की थी यानी 16
सीटों की कसर रह गई है, पिछली बार सपा-बसपा गठबंधन ने 15 सीट और एक सीट
रायबरेली पर कांग्रेस पार्टी ने जीत हासिल की थी यहां 16 सीट, बंगाल में 24 सीटें
और तीसरा अहम राज्य ओडिशा, जहां 21 सीटों में से 8 सीटें हासिल की थी
भाजपा के लिए यहां पर करीब-करीब 13 सीटों का स्कोप पिछली बार था तो, इन
सबको मिला दें तो ये 53 सीटें हैं, जहां पर एक स्कोप बनता है लेकिन, मैं
कह रहा हूं कि पश्चिम बंगाल में खासकर 42 में से 20 सीटें ऐसी हैं, जहां पर
मुस्लिम वोटर निर्णायक होते हैं इस बार कांग्रेस-टीएमसी में गठबंधन नहीं
हो पाया और दोनों ही दल भिन्न-भिन्न चुनाव लड़ रही हैं“प्रदीप गुप्ता
ने आगे जिक्र किया कि अब देखना यह होगा कि कांग्रेस पार्टी और लेफ्ट पार्टी का
अलायंस होता है, क्या वह मुसलमान वोट का बंटवारा कर पाते हैं, उसके ऊपर
काफी कुछ निर्भर करेगा कि बीजेपी को 18 में से कितनी अधिक सीटें मिलने की
उम्मीद है दूसरी बात क्या वह 18 सीटें भी मेंटेन कर पाते हैं, क्योंकि
यहां पर भी विधानसभा चुनाव हुए थे, जिसमें बीजेपी ने अच्छा प्रदर्शन किया
था वहीं, तृण मूल काँग्रेस से कांग्रेस पार्टी और लेफ्ट का गठबंधन नहीं होने के बावजूद भी
294 में से एक सीट भी हासिल नहीं हुई और तृण मूल काँग्रेस ने अकेले 213 सीटें जीती
थी तीसरी श्रेणी है, जहां पर सबकी नज़रें लगी हुई है क्योंकि, इस श्रेणी
में 100 के करीब सीटें आती हैं इस श्रेणी में तमिलनाडु-पुडुचेरी की 40
सीटें, आंध्र प्रदेश 25 सीटें, पंजाब और चंडीगढ़ 14 सीटें हैं इसके अलावा
केरल की 20 सीटें है कुल मिलाकर 101 सीटें हैं, जिसमें एनडीए ने सिर्फ़ पांच
सीटें जीती थीउन्होंने आगे कहा कि तमिलनाडु में एआईडीएमके पिछली
बार एनडीए गठबंधन का हिस्सा थी, इस बार काफी कुछ बातें चल रही हैं, चर्चा
चल रही है, लेकिन, अभी तक कोई फैसला नहीं हो पाया है 40 में से एक सीट
एआईडीएमके ने जीती थी यहां पर बीजेपी का खाता भी नहीं खुला था केरल में
जहां लेफ्ट और कांग्रेस पार्टी पार्टी का मुकाबला है वहां पर भी बीजेपी की एक भी
सीट नहीं आई थी पिछले चुनाव में पंजाब में दो सीटें अकाली दल और दो सीटें
भाजपा गठबंधन ने जीती थी हालांकि, इस बार दोनों के बीच गठबंधन नहीं हुआ
है देखने वाली बात है कि इन राज्यों में पांच सीटें एनडीए ने जीती थी
इनमें से आंध्र प्रदेश में एक भी सीट पर जीत हासिल नहीं हुई थी“लेकिन,
अब आंध्र प्रदेश में बीजेपी टीडीपी और जेएसपी को एनडीए में शामिल कर पाने
में सफल हुई है पिछले विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक ही दिन हुए थे जगन
मोहन रेड्डी की पार्टी वाईएसआरसीपी ने 25 में से 22 सीटें हासिल की थी और
टीडीपी को सिर्फ़ तीन सीटें मिली थी और विधानसभा चुनाव में धुआंधार 175 में
से 151 सीटें वाईएसआरसीपी ने जीती थी इसका मतलब यह है कि क्या टीडीपी,
भाजपा और जेएसपी का गठबंधन इस बार कुछ कमाल कर पाएगा यदि कमाल करता है तो
यहां पर एनडीए के लिए अच्छा स्कोप है कि पिछले बार के अंतर की भरपाई कर
सके

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