500 वर्ष पूर्व भारत आई जलेबी आज हुई भारत की
इतिहासकारों का मानना है कि जलेबी ईरान की मिठाई है। जिसे वहां जिलूबिया बोला जाता था। करीब 500 साल पूर्व हिंदुस्तान आई जलेबी आज हिंदुस्तान की ही हो गई है। हल्के नारंगी रंग और चासनी में डूबी जलेबियां, स्वयं को ऑयल में तपा कर हमारे मुंह का स्वाद बढ़ा देती हैं, लेकिन कुछ जलेबियां लाजवाब होती हैं। ऐसी ही एक जलेबी है हजारीबाग के मटवारी गांधी मैदान में बिकने वाले विकास हरियाणवी जलेबी।
हरियाणवी जलेबी के संचालक विकास बताते हैं कि वह पिछले 2 वर्ष से जलेबी बनाकर बेचने का काम करते हैं। इससे पूर्व में वो चाय की दुकान चलाया करते थे, लेकिन उन्होंने स्वयं से जलेबी बनाना यूट्यूब से सीखा और जलेबी की दुकान चलाने लगे। जलेबी 140 रुपए किलो, 10 रुपए की 4 जलेबी और 35 रुपए का 250 ग्राम है।
जलेबी की रेसिपी है खास
विकास आगे बताते हैं कि उनकी जलेबी की रेसीपी खास है। जिस कारण उनका स्वाद सबसे स्पेशल है। जलेबी बनाने के लिए सबसे पहले मैदे का घोल तैयार करके उसे 24 घंटा पहले फर्मेंट होने के लिए छोड़ दिया जाता है। फिर उसे घी में पकाया जाता है। जिस कारण उसमें अधिक कुरूकरापन आ जाएं। फिर उसे इलाइची और चीनी के चासनी में डूबोकर बाहर निकाल गरमा गरम परोसा जाता है।
उन्होंने आगे कहा कि हमारी जिलेबी इतनी टेस्टी होती है कि दूर-दूर से लोग उसका स्वाद लेने आते हैं। रांची और बोकारो से भी कोई हजारीबाग आता है तो मेरी जलेबी को जरूर टेस्ट करता है। खाता तो है साथ में पैक करा कर भी ले जाते हैं। प्रत्येक दिन करीब 500 पीस जलेबी की खपत है। कभी-कभी मर्सिडीज से भी लोग यह जलेबी का स्वाद लेने आते हैं। जलेबी का स्वाद लेने आए विकास नगर के राजेश मिर्धत बताते हैं कि वो यहां अकसर जलेबी खाने आते हैं। यहां की जलेबी का स्वाद सबसे अलग और लाजवाब है। जलेबी का स्वाद लेने के लिए हजारीबाग के मटवारी गांधी मैदान के गेट के नजदीक आना होगा। यह जलेबी का स्टॉल गांधी मैदान के मेन गेट पर लगाया जाता है।