ट्रक ड्राईवर की बेटी ने जीता मिस आइकन ऑफ इण्डिया का खिताब

ट्रक ड्राईवर की बेटी ने जीता मिस आइकन ऑफ इण्डिया का खिताब

रांची ओम शांति ओम फिल्म में एक डायलॉग है कि किसी भी चीज को शिद्दत से चाहो तो पूरी कायनात तुम्हें उससे मिलाने की षड्यंत्र में लग जाते हैं एकदम वैसे ही झारखंड की राजधानी रांची से 25 किलोमीटर दूरी पर स्थित ओरमांझी ब्लॉक से रोला गांव की निवासी सुषमा कुमारी ने मिस आइकन ऑफ इण्डिया का खिताब जीतकर यह बात साबित कर दिया यह आयोजन बीते दिनों छत्तीसगढ़ में आयोजित की गई थी आज सुषमा लड़कियों के लिए प्रेरणा का साधन बन चुकी है

सुषमा ने News18 Local को बताया, बचपन से ही एंकरिंग और मॉडलिंग का शौक रहा है पिताजी ट्रक ड्राइवर हैं घर की आर्थिक स्थिति उतनी ठीक नहीं थी इसलिए बड़े शहर या कोई बड़े इंस्टिट्यूट में जाना नामुमकिन था यह खिताब जीतने के बाद मेरा बचपन का सपना पूरा हुआ है

आपके शहर से (रांची)

फिलहाल मास कॉम की पढ़ाई कर रही है सुषमा

सुषमा ने कस्तूरबा बालिका विद्यालय से मैट्रिक किया है आरटीसी स्कूल, बूटी मोड़ से इंटर और अभी रांची यूनिवर्सिटी के मासकॉम में प्रथम साल की छात्रा हैं सुषमा कहती है, मैंने कई कार्यक्रम मैं एंकरिंग की है आज एंकरिंग के जरिए ही यहां तक पहुंच पाई हू एक प्रोडक्शन हाउस से टेलीफोन आया कि आपको एंकरिंग करते हुए देखा है आप इस आयोजन में पार्टिसिपेट करना चाहती है मेरे लिए यह किसी सरप्राइज से कम नहीं था

सुषमा ने बताया,हालांकि छत्तीसगढ़ आने जाने और नए कपड़े के लिए भी अच्छे खासे पैसे की आवश्यकता थी पैसे की तंगी थी पापा ने 3500 मुझे दिए थे लेकिन मुझे कम से कम चार से पांच कपड़े की आवश्यकता है जो इतने पैसे में आना नामुमकिन था तब मैंने गूगल में सर्च किया तो पता चला की अरघोड़ा के पास किराए में कपड़े मिलते हैं तो बस वही से मैंने 2000 में किराए में कपड़े ले लिया और 1500 रुपए बचा भी लिया जिससे छत्तीसगढ़ आने जाने का भाड़ा और वहां रहने का व्यवस्था भी हो गया

30 लड़कियां को हराकर जीता खिताब

सुषमा ने बताया कि, फिनाले में तीस का चयन हुआ था ये तीस लड़कियां बड़े-बड़े शहरों से ताल्लुक रखने वाली थीं उनकी पढ़ाई भी अच्छे स्कूल-कालेज में हुई थी, जबकि मैं सरकारी विद्यालय से थी फिर भी हौसला कम नहीं हुआ जब पांच मार्च को फिनाले की घोषणा हुई तो कान पर विश्वास नहीं हुआ खिताब मेरे सिर पर बंध गया था

सुषमा के पिता राजेंद्र महतो कहते हैं, बेटी हमेशा से मेहनत ही थी, आशा था कि एक ना एक दिन कुछ बड़ा करेगी लेकिन इतनी कम उम्र में इतना बड़ा खिताब जीतना किसी सपने के सच होने जैसा है हमें आशा है यह बहुत आगे तक जाएगी वही मां उर्मिला देवी कहती है, हमारी बेटी कोई बेटे से कम है क्या हमें बेटा की आवश्यकता महसूस नहीं हुई क्योंकि हमारी बेटी इतनी योग्य और होनहार है