शिबू सोरेन की बहू ने ससुर के नाम लिखी चिट्ठी के माध्यम से सौंपा अपना इस्तीफा
रांची। झारखंड के सबसे बड़े सियासी घराने की बहू ने मंगलवार को बारिश के बावजूद झारखंड की राजनीति को गरमा दिया। जेएमएम के अध्यक्ष शिबू सोरेन की बहू ने ससुर के नाम लिखी चिट्ठी के माध्यम से अपना त्याग-पत्र सौंपा। विधायक और सोरेन खानदान की बहू सीता सोरेन ने ससुर के नाम लिखी चिट्ठी में अपनी खूब पीड़ा व्यक्त की। इस्तीफे की चिट्ठी लिखते हुए सीता सोरेन ने अपने आप को परिवार और पार्टी से नजरअंदाज किये जाने का गंभीर इल्जाम लगाया है। लगे हाथों दुर्गा सोरेन की भाजपा में ज्वाइनिंग भी हो गई।
राजनीतिक पंडितों का यह मानना है कि सीता सोरेन की भाजपा में इंट्री काफी दिनों से तय थी और लगातार उनकी भाजपा के नेताओं से वार्ता छह महीने से चल रही थी। इस वार्ता में रंग तब भर गया जब चम्पाई सोरेन मंत्रिमंडल में सीता सोरेन की स्थान बसंत सोरेन को स्थान दी गयी, बस यहीं से दिल टूट गया सीता सोरेन का। अब आगे गीता के बाद सीता की राजनीतिक चाल पर सबकी निगाहें जरूर टिकी रहेंगी.
मालूम हो कि पश्चिमी सिंहभूम से सांसद गीता कोड़ा ने कांग्रेस पार्टी का साथ छोड़कर बीजेपी की सवारी की थी, उस समय भी राजनीतिक गलियारों में इस बात के दावे किये जा रहे थें कि गीता कोड़ा के साथ ही बाबूलाल का यह अभियान खत्म नहीं होने जा रहा। हालांकि जिस ढंग इन खबरों के बीच भी गोड्डा सांसद निशिकांत सीता सोरेन पर आरोपों की बौछार कर रहे थे। भाजपा के इस प्लान का मूल कारण संथाल क्षेत्र है।
इस क्षेत्र में विधानसभा की कुल 18 सीटें आती हैं, जिसमें से 9 पर झामुमो, 5 पर कांग्रेस पार्टी और 4 पर बीजेपी का कब्जा है जबकि झाविमो के द्वारा जीती गयी दो सीटें भी बीजेपी के साथ ही हैं। इस प्रकार संथाल की कुल 18 विधानसभा सीटों में आज बीजेपी के पास 4 हैं, जबकि 14 पर महागठबंधन का कब्जा है। हालांकि झामुमो कोटा से एक विधायक लोबिन हेम्ब्रम भी लगातार गवर्नमेंट को निशाने पर लेते रहे हैं, और अब सीता भी बीजेपी के साथ होने वाली है। इस नजरिये से देखे तो सीता के इस बगावत के बाद संथाल में बीजेपी एक ताकत से साथ सामने आती दिखती है।
लेकिन सामाजिक समीकरणों की बात करें, तो स्थिति बदली नजर आती है और खासकर तब संथाल की राजनीति में सीता का कद इतना बड़ा नजर नहीं आता कि वह अपने दम पर कोई कमाल कर सकें। संथाल की सियासत पर नजर रखने वालों का मानना है कि सीता की इस पलटी से झामुमो का जो सामाजिक आधार है। उसमें कोई सेंधमारी नहीं होने वाली, क्योंकि संथाल की राजनीति में सीता का यह राजनीतिक यात्रा झामुमो के जनाधार के बल पर ही बढ़ता रहा है। इस हालत में भले ही सीता पलटी मार चुकी हों, लेकिन बीजेपी के लिए अभी भी संताल का किले भेदना एक कठिन चुनौती है।