अंतर्राष्ट्रीय

CAA को लेकर अमेरिका ने दिया भारत को ज्ञान, रिपोर्ट में कही गई ये बात 

वाशिंगटन: अमेरिका संसद की एक स्वतंत्र अध्ययन इकाई द्वारा जारी रिपोर्ट में दावा किया गया है कि हिंदुस्तान में इस साल लागू किए गए नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के प्रावधानों से भारतीय संविधान के कुछ अनुच्छेदों का उल्लंघन हो सकता है. हिंदुस्तान के 1955 नागरिकता अधिनियम में संशोधन कर इस वर्ष मार्च में सीएए को लागू किया गया है. ‘कांग्रेसनल रिसर्च सर्विस (सीआरएस)’ की ‘इन फोकस’ रिपोर्ट में दावा किया गया कि सीएए के प्रमुख प्रावधानों से भारतीय संविधान के कुछ अनुच्छेदों का उल्लंघन हो सकता है. सीएए के तहत, 31 दिसंबर 2014 से पहले हिंदुस्तान आए पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के गैर-मुस्लिम प्रवासियों को नागरिकता मिलेगी.

रिपोर्ट में कही गई ये बात 

रिपोर्ट में बोला गया कि इस कानून के विरोधियों ने चेतावनी दी है कि पीएम मोदी और उनकी हिंदू राष्ट्रवादी बीजेपी क हिंदू बहुसंख्यकवादी, मुसलमान विरोधी एजेंडे को आगे बढ़ा रही हैं, जिससे हिंदुस्तान को आधिकारिक रूप से धर्मनिरपेक्ष गणराज्य का दर्जा देने वाली छवि धूमिल होती है. साथ ही इससे अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार मानदंडों और दायित्वों का भी उल्लंघन होता है.

अल्पसंख्यकों के अधिकारों को खतरा

सीआरएस की तीन पन्नों वाली ‘इन फोकस’ रिपोर्ट में इल्जाम लगाया गया कि हिंदुस्तान गवर्नमेंट द्वारा नियोजित एनआरसी और सीएए कानून से से हिंदुस्तान के करीब 20 करोड़ मुसलमान अल्पसंख्यकों के अधिकारों को खतरा है. सीआरएस रिपोर्ट ने अमेरिकी संसद को कहा कि साल 2019 में अमेरिकी राजनयिक ने सीएए के प्रति चिंता व्यक्त की थी. हालांकि, इससे हिंदुस्तान और अमेरिका के संबंधों पर कोई असर नहीं पड़ेगा.

मानवीय है उद्देश्य

भारत गवर्नमेंट और सीएए के अन्य समर्थकों ने दावा किया है कि इसका उद्देश्य पूरी तरह से मानवीय है. हिंदुस्तान गवर्नमेंट ने सीएए के विरुद्ध की गई आलोचनाओं को खारिज करते हुए बोला कि इसे “वोटबैंक की राजनीति” का नाम नहीं देना चाहिए जबकि ये संकट में फंसे लोगों की सहायता के लिए एक ‘प्रशंसनीय पहल’ है.

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