आखिर बलूच प्रांत के लोग चीन के इस कंस्ट्रक्शन से परेशान और नाराज क्यों हैं? पढ़िए पूरी खबर
चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा दोनों राष्ट्रों के बीच की सबसे महत्वापूर्ण योजना है। इसके अतिरिक्त पाक में चीनी कंपनियों के कई अन्य प्रोजेक्ट भी चल रहे हैं। चीन पाक को आर्थिक गुलाम बनाने और हिंदुस्तान पर नैतिक दबाव बनाने के इरादे से पाक में रुपये का निवेश कर रहा है। प्रश्न यह उठता है कि चीन के लिए बलूचिस्तान इतना अहम क्यों हैं? दरअसल, बलूचिस्तान के समुद्री किनारे पर उपस्थित ग्वादर बंदरगाह चीन की उस रणनीति का एक अहम हिस्सा है जिसके अनुसार वो करोड़ों डॉलर्स खर्च करके चाइना-पाकिस्तान इकॉनोमिक कॉरिडोर (CPEC) बना रहा है। लेकिन चीन की राह इतनी सरल नहीं हैं।
बलूच लोग चीनियों पर लगातार हमले करते रहे हैं। 13 अगस्त को धावा हुआ उसका निशाना चीनी इंजीनियर्स को ले जा रही बस ही थी। इसके बाद अप्रैल 2022 में चीन के प्रोफेसर्स को ले जा रही एक वैन पर एक स्त्री फिदायीन ने धावा किया था, जिसमें चार चीनी प्रोफेसर्स की मृत्यु हो गई थी। इससे पहले 2020, 2018 और 2017 में भी चीनी नागरिकों पर हमले हो चुके हैं। बलूचिस्तान में हुए हमलों में 23 चीनी नागरिक मारे जा चुके हैं।
चीन के प्रति क्यों गुस्से से भड़क रहे हैं बलूच प्रांत के लोग?
पाकिस्तान के बलूचिस्तान में इस समय जो कुछ भी हो रहा है, उसके बाद चीन को यह बात समझ में आ गई है कि उसके नागरिक यहां पर बहुत असुरक्षित हैं। दरअसल, चीन सीपैक के अनुसार जो भी प्रोजेक्ट्स पाक के बलूचिस्तान क्षेत्र में चला रहा है, इसका खामियाजा क्षेत्रीय लोगों को भुगतना पड़ रहा है। इन प्रोजेक्ट्स के कारण बलूचों को अपने गांवों को छोड़ कर जाना पड़ रहा है। यही विस्थापन गुस्से को और भड़का रहा है। यहां लोगों के रोजगार, घर सब जमे हुए हैं, लेकिन चीनी काम से यहां के लोगों को विस्थापन का दंश झेलना पड़ रहा है, यह इन लोगों के गुस्से की सबसे बड़ी वजह है।
बीएलए ने उठाया है बलूचियों के आक्रोश का झंडा
चीन के विकास और इससे जुड़े कई इनफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स को बलूचों की नाराजगी झेलनी पड़ रही है। इन प्रोजेक्ट्स के कारण बलूचों को अपने गांवों को छोड़ कर जाना पड़ रहा है। यही विस्थापन गुस्से को और भड़का रहा है। इन क्षेत्रीय नागरिकों की मंशा है कि चीन के प्रोजेक्ट्स बंद हों और उन्हें यहां परंपरागत काम करने दिया जाए, उनकी आजादी में दखल न डाला जाए। इसी उद्देश्य को लेकर वे अक्सर हिंसक हो जाते हैं। इन लोगों के आक्रोश का झंडा बीएलए ने उठाया है।
विस्थापन की वजह है चीन, तभी बीएलए कर रही लगातार हमले
बलूचिस्तान में इस समय चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (सीपीईसी) के कई प्रोजेक्ट्स चल रहे हैं। ग्वादर बंदरगाह में चीन की मौजूदगी ने मौजूदा समस्याओं को बढ़ा दिया है। पिछले दिनों चीनी कर्मियों को ले जा रहे एक काफिले को बलूच उपद्रवियों ने निशाना बनाया था। पिछले साल, बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (बीएलए) के एक आत्मघाती हमलावर ने कराची यूनिवर्सिटी के कन्फ्यूशियस इंस्टीट्यूट से जुड़े तीन चीनी टीचर्स और उनके पाकिस्तानी ड्राइवर की मर्डर कर दी थी।
सामरिक दृष्टि से चीन को क्या है फायदा?
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक ग्वादर बंदरगाह, बीजिंग को हिंद महासागर क्षेत्र तक रास्ता देता है। जबकि क्षेत्र में एक मिलिट्री बेस की संभावनाओं को भी मजबूत करता है। परेशानी यह है कि बंदरगाह को पूरी तरह से पाकिस्तान की गवर्नमेंट ऑपरेट करती है। यहां पर केवल चीनी नागरिकों को ही रोजगार दिया गया है। इस कारण क्षेत्रीय लोगों को कोई रोजगार नहीं मिल पाता है। इस प्रोजेक्ट का उन्हें कोई फायदा न मिलता देख वे नाराज रहते हैं। यही नहीं, जानकारों के मुताबिक बलूचिस्तान के सैंडक में सोने की खदान भी चीनियों को मालामाल कर रही है। इस खदान को चीन की तरफ से ही संचालित किया जाता है। इससे चीन भारी फायदा कमा रहा है, जबकि क्षेत्रीय लोगों को कोई फायदा नहीं मिल रहा है।
सीपीईसी और बीआरआई का विरोध करता है भारत
भारत प्रारम्भ से ही चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) का विरोध करता रहा है। इसके अतिरिक्त चीन पाक में बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) पर भी काम कर रहा है। पाक में चीन का यह महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट है। इसे चीन पीओके से ले जा रहा है। इस वजह से हिंदुस्तान ने सीपीईसी के साथ बीआरआई का भी कड़ा प्रतिरोध जता चुका है। मगर चीन मानने को तैयार नहीं है। चीन बीआरआई के जरिये हिंदुस्तान की पाक से लगी सीमा तक अपनी पहुंच बढ़ाना चाहता है।