अंतर्राष्ट्रीय

15 साल की नामकी ‘चीनी दमन’ के बारे में दुनिया भर के लोगों को करना चाहती है जागरूक

महज 15 वर्ष की उम्र में ‘स्वतंत्र तिब्बत’ की मांग को लेकर चीन में कारावास जा चुकी एक तिब्बती लड़की ने बोला है कि वह ‘चीनी दमन’ से दुनिया को अवगत कराना चाहती है. दलाई लामा के चित्रों को सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करने और तिब्बत को ‘स्वतंत्र’ करने की मांग के कारण तिब्बती लड़की नामकी और उसकी बहन को चीनी ऑफिसरों ने तिब्बती काउंटी नगाबा में 21 अक्टूबर, 2015 को पकड़ लिया था. दोनों बहनों को तीन वर्ष के लिए कारावास में बंद कर दिया गया. तब नामकी की उम्र सिर्फ़ 15 वर्ष थी.

तिब्बत में ‘चीनी दमन’

नामकी ने कहा कि वह तिब्बत में ‘चीनी दमन’ के बारे में पूरे विश्व के लोगों को सतर्क करना चाहती है. 10 दिनों की मुश्किल पैदल यात्रा के बाद नेपाल में प्रवेश करने के कुछ हफ्ते बाद पिछले वर्ष जून में वह हिंदुस्तान पहुंची. नामकी अब 24 वर्ष की हो चुकी हैं. अभी नामकी हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में निर्वासित तिब्बती गवर्नमेंट द्वारा संचालित एक शैक्षणिक संस्थान ‘शेरब गैटसेल लिंग’ की छात्रा हैं.

डर में जी रहे हैं तिब्बत के लोग 

नामकी ने यहां संवाददाताओं से कहा, ‘‘चीनी गवर्नमेंट तिब्बत के बारे में पूरी दुनिया को जो दिखा रही है वह हकीकत के एकदम उलट है. तिब्बती लोग बढ़ते भय और दमन के अनुसार जी रहे हैं.’’ उन्होंने इल्जाम लगाया कि चीन तिब्बत की पहचान को कमजोर करने की प्रयास कर रहा है. नामकी ने कहा, ‘‘मैं दुनिया को बताना चाहती हूं कि तिब्बत में क्या हो रहा है. मैं तिब्बती लोगों की आवाज बनकर दुनिया को उनके दर्द एवं पीड़ा तथा चीनी दमन के बारे में बताना चाहती हूं.’’

पुलिस ने पकड़ लिया 

चारो गांव के एक विशिष्ट खानाबदोश परिवार में जन्मी नामकी ने नगाबा के एक प्रमुख क्षेत्र में ‘स्वतंत्र तिब्बत’ का आह्वान करने और दलाई लामा की तिब्बत में शीघ्र वापसी की मांग को लेकर प्रदर्शन करने के बाद उसे और उसकी बहन तेनजिन डोलमा को हिरासत में लिए जाने की उस घटना की याद को साझा किया. उन्होंने 21 अक्टूबर, 2015 के विरोध प्रदर्शन के बारे में कहा, ‘‘हमारे मार्च को 10 मिनट से अधिक नहीं हुए थे कि चार-पांच पुलिस अधिकारी आए और हमारे हाथों से (दलाई लामा की) फोटोज़ छीन लीं.’’ उन्होंने कहा, ‘‘हमने फोटोज़ अपने हाथ से नहीं जाने दीं और पुलिस की कार्रवाई का विरोध किया. आखिरकार, पुलिस ने हमें खींचकर सड़क पर गिरा दिया और चुप रहने के लिए कहा. लेकिन हमने लगातार नारे लगाए.’’

यातनाएं दी गईं

नामकी ने कहा, ‘‘इसके बाद उन्होंने हमारे हाथों में हथकड़ी लगा दी और पुलिस के गाड़ी में डाल दिया. हमें नगाबा काउंटी के हिरासत केंद्र में ले गए. फिर वो हमें बरकम शहर के दूसरे हिरासत केंद्र में ले गए. मुझे और मेरी बहन को गंभीर यातनाएं दी गईं.’’ उन्होंने बोला कि दोनों बहनों से एक छोटे से कमरे में पूछताछ की गई जहां अत्यधिक गर्मी उत्पन्न करने के लिए हीटर चालू किया गया था. दोनों से भिन्न-भिन्न विभिन्न प्रश्न पूछे गए, जैसे कि हमें विरोध प्रदर्शन करने के लिए किसने उकसाया, हमें दलाई लामा के चित्र कहां से मिले आदि. उन्होंने कहा, ‘‘मानसिक और शारीरिक यातना के बावजूद, हमने सिर्फ़ इतना उत्तर दिया कि हम दोनों ने स्वतंत्र रूप से विरोध प्रदर्शन करने का निर्णय किया और किसी ने हमें उकसाया नहीं. हमने यह भी बोला कि हमारे परिवार के सदस्यों को इसके बारे में कुछ भी नहीं पता था.’’

ऐसे पहुंची नेपाल

नामकी ने बोला कि गिरफ्तारी के लगभग एक वर्ष बाद सुनवाई प्रारम्भ हुई. उन्होंने बोला कि सुनवाई प्रारम्भ होने के दिन अपनी गिरफ्तारी के बाद पहली बार उन्होंने अपनी बहन को देखा, लेकिन न्यायालय ने दोनों को कारावास भेज दिया. नामकी ने बोला कि 21 अक्टूबर 2018 को दोनों बहनों को सजा पूरी करने के बाद कारावास से रिहा कर दिया गया. नामकी ने इल्जाम लगाया कि चीनी ऑफिसरों ने उनके और उनकी बहन के प्रदर्शन के मद्देनजर उनके परिवार के सदस्यों और संबंधियों को ‘परेशान’ किया. उन्होंने बोला कि 13 मई, 2023 को उन्होंने बिना किसी को बताए अपनी चाची त्सेरिंग की के साथ पलायन करने के मकसद से यात्रा प्रारम्भ की और सबसे पहले एक सीमा को पार कर नेपाल पहुंची.

तिब्बत में क्या चल रहा है

नामकी ने बोला कि वह पिछले वर्ष 28 जून को धर्मशाला पहुंची थी. हिंदुस्तान में करीब 10 महीने रहने के बाद अब उन्हें चिंता सता रही है कि वहां उनके परिवार को निशाना बनाया जा सकता है. उन्होंने कहा, ‘‘तिब्बत में लोग दयनीय स्थिति में रह रहे हैं. मैं दुनिया के सामने उनकी आवाज बनना चाहती हूं. मैं विभिन्न राष्ट्रों का दौरा करना चाहती हूं और प्रचार करना चाहती हूं और उन्हें बताना चाहती हूं कि तिब्बत में क्या चल रहा है.’’

चीन ने किया क्या 

1959 में एक असफल चीन विरोधी उपद्रव के बाद 14वें दलाई लामा तिब्बत से भागकर हिंदुस्तान आ गए थे जहां उन्होंने निर्वासित गवर्नमेंट की स्थापना की. चीनी गवर्नमेंट के ऑफिसरों और दलाई लामा या उनके प्रतिनिधि के बीच 2010 के बाद से कोई औपचारिक वार्ता नहीं हुई है. बीजिंग कहता रहा है कि उसने तिब्बत में क्रूर धर्मतंत्र से ‘मजदूरों और दासों’ को मुक्त कराया और इस क्षेत्र को समृद्धि और आधुनिकीकरण के रास्ते पर ले गया. चीन ने अतीत में दलाई लामा पर तिब्बत को विभाजित करने की प्रयास करने का इल्जाम लगाया है.

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