चरक संहिता में भी इस साग का किया गया वर्णन, कब्ज, हिमोग्लोबिन और कुपोषण को करेगा दूर
दरभंगा:- साग के कई प्रकार हैं और लगभग हर साग में कुछ ना कुछ औषधीय गुण होते हैं, जो हमारे शरीर में विटामिन प्रोटीन के अतिरिक्त कई असाध्य रोगों को जड़ से मिटाने में कारगर साबित हैं। उसी में बथुआ साग का भी नाम आता है। बथुआ साग खाने में टेस्टी होने के साथ हमारे शरीर को स्वस्थ रखने में भी कारगर होता है। शायद आपको पता ना हो कि बथुआ शरीर में औषधि का कार्य करता है, जो हमारे रोगों को दूर करता है। यह अपने गुणों के कारण ही त्रिदोष नाशक कहलाता है। आयुर्वेद में इसका काफी महत्व है। इस पर विस्तृत जानकारी दरभंगा आयुर्वेदिक कॉलेज के प्राचार्य सह अधीक्षक चिकित्सक शंभू शरण ने दी।
चरक संहिता के सूत्र जगह में भी बथुआ का वर्णन
चरक संहिता के सूत्र जगह का 27वां अध्याय अन्न पान विषयक अध्याय है। उसमें 60 वर्ग में बथुआ का वर्णन किया गया है और बथुआ के बारे में दो शब्द काफी जरूरी लिखा हुआ है। इसमें जो पहला शब्द है कि यह त्रिदोष नाशक है। त्रिदोष नाशक का मतलब है कि इसमें बहुत ही व्यापक औषधि है। आयुर्वेद में सभी रोंगों को तीन कैटेगरी में बांटा गया है। यह सभी कैटेगरी में व्यापक औषधि के रूप में कार्य करता है। आयुर्वेद के हिसाब से जितनी भी प्रकार की बीमारियां होती है, उसमें इसे खाने से फायदा होता ही है।
सभी रोंगों में है फायदेमंद
डॉक्टर शंभू शरण ने बोला कि आम बोलचाल की भाषा में कहते हैं कि फलां रोग में यह नहीं खाना चाहिए या इस रोग में इस प्रकार के खान-पान से परहेज करना है, लेकिन बथुआ का साग हर रोंगों में लाभ वाला होता है। दूसरी बात यह है कि अक्सर साग से लोगों की कब्जियत बढ़ जाती है। लेकिन बथुआ एकमात्र ऐसा साग है, जो आपके मल को बांधता नहीं है, बल्कि उसको और पतला करता है। जिससे कब्जियत की परेशानी से आप दूर रहते हैं। इसे खाने से हीमोग्लोबिन बढ़ता है और खासकर कुपोषित एरिया के लोगों को बथुआ का लगातार आहार लेना चाहिए। जिससे कई सारी रोंगों से लोग बच सके।