स्वास्थ्य

युवाओं पर आफत बनेंगी ये बीमारियां

Quit Job Due to Ill Health: अब तक यह मान्यताएं रही हैं कि अगर कोई व्यक्ति बीमार भी है तो वह काम से नहीं हटता लेकिन भविष्य में इसके एकदम उलट होने की आशंका जताई जा रही है. ब्रिटिश रिजॉल्यूशन फाउंडेशन के एक अध्ययन के मुताबिक आज जो व्यक्ति 20 साल के आसपास हैं, वे अपने उम्र के 40 वें पड़ाव में काम-काज छोड़ देंगे. यह काम काज अपने मन से नहीं बल्कि बीमारियों के कारण छोड़ देंगे. अध्ययन के दावों के मुताबिक 40वें साल के आसपास व्यक्ति मानसिक रूप से इतने बीमार हो जाएंगे कि उन्हें नौकरी छोड़नी पड़ेगी. आंकड़े बता रहे हैं कि युवा उम्र के लोगों में मेंटल हेल्थ बहुत बड़ी समस्या बनती जा रही है.

अभी से नौकरी छोड़ने की प्रवृति

अध्ययन में पाया गया है कि युवाओं के नौकरी छोड़ने की प्रवृति एक तरह से शुरू हो गई है. दावा किया गया है कि 2023 में 20 युवाओं में से एक ने नौकरी या पढ़ाई बीच में छोड़ दी क्योंकि उनका स्वास्थ्य इस कदर खराब हो गया कि काम करने की क्षमता से बाहर हो गए. यह रुझान शिक्षा पर भी नकारात्मक असर डाल रहा है. वहीं इसका सबसे ज्यादा असर कम पैसा कमाने वाले लोगों पर दिखाई देगा या जो लोग बेरोजगार हैं, उनके लिए और मुश्किलें खड़ी होंगी. अध्ययन के मुताबिक यंग लोग सबसे ज्यादा मेंटल हेल्थ की समस्याओं से जूझ रहे हैं. अगर इससे 20 साल पहले के अध्ययन पर ध्यान दें तो मामला उल्टा था क्योंकि तब युवाओं में मेंटल हेल्थ के बहुत कम ही मामले थे.

 

आर्थिक संकट भी कम नहीं

हालिया रुझानों में पाया गया कि 18 से 24 साल के 34 प्रतिशत युवा 2021-22 में किसी न किसी तरह के मेंटल हेल्थ के शिकार थे. इनमें एंग्जाइटी, डिप्रेशन या बायपोलर डिसॉर्डर सबसे आम थी. इसकी ताकीद इस बात से हो रही है कि 2021-22 में ही 18 से 24 साल के 5 लाख युवा एंटी-डिप्रेशन की गोलियां ले रहे हैं. ये सारे आंकड़ें इस बात की ओर इशारा है कि युवा 40 साल की उम्र तक आते-आते इन बीमारियों की वजह से काम करने की अपनी क्षमता को ही खो देंगे. रिजॉल्यूशन फाउंडेशन के सीनियर इकोनोमिस्ट लूइस मर्फी ने बताया कि इस अध्ययन से यह भी साबित हो रहा है कि आने वाले दिनों में इन युवाओं पर आर्थिक संकट का बोझ बहुत ज्यादा होने वाला है. खासकर उन युवाओं पर जिन्होंने यूनिवर्सिटी की डिग्री न ली है क्योंकि आज भी तीन में से एक युवा मेंटल हेल्थ से जूझ रहे हैं और वे ग्रेजुएट नहीं हैं. अध्ययन में यह भी कहा गया कि युवा पढ़ाई में भी कमजोर हो रहे हैं. स्टडी के मुताबिक 18 से 24 साल के 79 प्रतिशत युवा इन बीमारियों के कारण सेकेंडरी एजुकेशन के लेवल मैथ, इंगलिश के सवाल नहीं बना पा रहे हैं. बच्चों में भी यह प्रवृति बढ़ रही है. हालांकि यह आंकड़े सिर्फ ब्रिटेन के हैं लेकिन कमोबेश आज दुनिया की स्थिति यही है.

इन खतरों को कैसे कम करें

एक तरफ दुनिया मानसिक परेशानियों से जूझ रही है, उसमें सभी के लिए इसे कम करना चुनौती है. इसका सबसे वैज्ञानिक तरीका यह है कि बचपन में खेल-कूद और कई सारे दोस्तों के साथ संपर्क में रहें. परिवार के साथ अच्छे संबंध रखें. यंग एज आने पर सामाजिक जीवन को ज्यादा जीएं. सकारात्मक सोच रखें. नए-नए दोस्त और नई-नई भाषा और जानकारी के प्रति लालायित रहें. सामाजिक जीवन और सामंजस्य के साथ बेहतर मेल-जोल इंसान को खुश रखता है. इन सबके अलावा अच्छी डाइट और नियमित रूप से योग और ध्यान करें.

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