स्वास्थ्य

ICMR की रिपोर्ट में सामने आए हैरान करने वाले तथ्य

 ICMR Report : भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) की रिपोर्ट में सामने आया है कि तकरीबन 45 प्रतिशत चिकित्सक ऐसा परचा लिख रहे हैं जो समझ में नहीं आ रहा है यानी डॉक्‍टर आधा-अधूरा परचा लिख रहे हैं. साथ ही 9.8 फीसदी डॉक्टर्स के प्रिस्क्रिप्शन ही गलत हैं. जानते हैं आखिर क्‍या है मामला.  

13 अस्‍पतालों का हुआ सर्वे:   

आईसीएमआर ने करीब 13 सरकारी अस्पतालों का सर्वे किया है. इनमें दिल्ली एम्स, ग्रेटर नोएडा का सरकारी मेडिकल कॉलेज, भोपाल एम्स, बड़ौदा मेडिकल कॉलेज, मुंबई जीएसएमसी, सफदरजंग अस्पताल, सीएमसी वेल्लोर, इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज पटना और पीजीआई चंडीगढ़ शामिल हैं.

 

9.8 फीसदी डॉक्टर्स के प्रिस्क्रिप्शन गलत:

इन अस्पतालों में से करीब 7800 रोगियों के पर्चे लिए गए और 4,838 की जांच की गई. इनमें से 2,171 पर्चों में कमियां मिलीं. आश्चर्य की बात यह है कि 475 यानी 9.8 फीसदी डॉक्टर्स के प्रिस्क्रिप्शन पूरी तरह से गलत पाए गए. यह पर्चे उन डॉक्टर्स के हैं जिन्हें बतौर चिकित्सक के रूप में प्रैक्टिस करते हुए 4 से 18 वर्ष का अनुभव हो गया है.


 

2019 से प्रारम्भ हुई पड़ताल: 

आईसीएमआर की यह पड़ताल वर्ष 2019 से ही प्रारम्भ हो गई थी. इसके लिए आईसीएमआर ने  दवाओं के तर्कसंगत इस्तेमाल को लेकर एक टास्क फोर्स बनाई. इस टास्क फोर्स ने अगस्त 2019 से अगस्त 2020 के बीच 13 अस्पतालों की ओपीडी में सर्वे किया. इन अस्पतालों में 7800 रोगियों के पर्चे में से 55.1 प्रतिशत नियमों के मुताबिक पाए गए. लेकिन 9.8 फीसदी पर्चे पूरी तरह से गलत मिले.

 

इन मरीजों के प्रिस्क्रिप्शन सबसे अधिक गलत:

इस सर्वे में यह भी सामने आया कि पैंटोप्राजोल, रेबेप्राजोल-डोमपेरिडोन और एंजाइम दवाएं सबसे अधिक रोगियों को लेने की सुझाव दिया गया. इसके साथ ही ऊपरी श्वास नली संक्रमण (यूआरटीआई) और उच्च रक्तचाप के मरीजों के प्रिस्क्रिप्शन सबसे अधिक गलत पाए गए.

 

दुनिया में 50% दवाएं गलत ढंग से लिखीं: 

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक पूरे विश्व में 50 प्रतिशत दवाएं गलत ढंग से रोगियों को दिए जाने का अनुमान है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 1985 में परचों को लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर की गाइडलाइन्स जारी की हैं. अधिकांश रोगियों को दवाओं के बारे में जानकारी नहीं होती है.

 

इन ओपीडी में हुआ सर्वे: 

आईसीएमआर की रिपोर्ट के मुताबिक अस्पतालों के सामुदायिक चिकित्सा, प्रसूति रोग, सामान्य चिकित्सा, सर्जरी, बाल रोग, त्वचा रोग, नेत्र रोग, ईएनटी और मनोचिकित्सा विभाग की ओपीडी में आने वाले मरीजों के पर्चों की जांच की गई.


 

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