स्वास्थ्य

जानें क्या है ब्रेन स्ट्रोक और इस बीमारी के लक्षण

ब्रेन स्ट्रोक ऐसी रोग है जो रोगी को पूरी तरह से बेड रिडन तक कर सकती है. कई मामलों में रोगी इस गंभीर और खतरनाक रोग से ऊबर जाते हैं मगर कई मामलों में ऐसा संभव नहीं हो पाता है. दिमाग की नसों में ब्लॉकेज होने के कारण आमतौर पर ये रोग होती है, जिसके कई बार लक्षण भी देखने को नहीं मिलते है.

ब्रेन स्ट्रोक क्या है?

ब्रेन में ऑक्सीजन की कमी के कारण होता है. ब्रेन में आर्टरी ब्लड सप्लाई करती है, ऑक्सीजन भी आर्टरी सप्लाई करती है. जब दिमाग में ऑक्सिजन नहीं पहुंचा है तो ब्रेन स्ट्रोक होता है. यदि आर्ट्री में ब्लॉकेज होता है और ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाती तो ब्रेन स्ट्रोक होता है. कई बार आर्ट्री में ब्लॉट रुक जाता है, ऐसी स्थिति में भी स्ट्रोक होता है. आर्ट्री में क्लॉट रुकता है तो ब्रेन स्ट्रोक हो जाता है. ये ऐसी रोग है जो शुगर, बीपी के रोगियों को होने का खतरा अधिक होता है. कई मामलों में एक तरफ का शरीर काम करना बंद कर देता है. बोलने की क्षमता समाप्त हो जाती है.

स्ट्रोक के कई प्रकार भी होते है. एक स्ट्रोक में आर्ट्री में जो खून की सप्लाई हो रही है वो ब्लॉक हो जाए. शरीर में कहीं क्लॉट है और वो आर्ट्री के जरिए ब्रेन में पहुंच जाए. तीसरी ढंग में नंबनेस या विकनेस होती है जो ठीक हो जाते ही. हैमरेज होने पर रोगी बेहोश हो जाता है. बिना सीटी स्कैन के रोगी के बारे में जानना संभव नहीं है.

क्यों होता है ब्रेन स्ट्रोक

जिस रोगी में कोलेस्ट्रोल अधिक मात्रा में होगा उन्हें ब्रेन स्ट्रोक होने का खतरा बना रहता है. ब्लड प्रेशर के रोगी में ब्रेन स्ट्रोक अधिक हो सकता है. ब्लड प्रेशर बढ़ने से भी स्ट्रोक आता है. कोलेस्ट्रॉल बढ़ा होने से ब्रेन की आर्ट्री में भी कोलेस्ट्रॉल बढ़ जाता है, जिससे फंगस बनता है और ये क्लॉट बना देता है. कई मामलों में बेड रिडन पेशेंट है, जिसकी मूवमेंट नहीं होती है उनमें भी ब्रेन स्ट्रोक होने का खतरा अधिक होता है.

दिख सकते हैं स्ट्रोक के लक्षण?

ब्रेन स्ट्रोक के रोगी का उपचार कामयाबी के साथ करने के लिए गोल्डन पीरियड के बारे में जानना जरुरी है. गोल्डन पीरियड के दौरान रोगी को उपचार मिलने पर उसे ठीक करना सरल है, क्योंकि इस दौरान चिकित्सक स्ट्रोक के प्रकार का पता लगातर उपचार प्रारम्भ कर सकते है.

ऐसे समझें स्ट्रोक के लक्षण

बोलने और दूसरे क्या कह रहे हैं, इसे समझने में अचानक कठिनाई होना. शरीर के एक तरफ चेहरे, हाथ या पैर का पक्षाघात या सुन्नता. एक या दोनों आँखों में देखने में समस्या, चलने में कठिनाई और संतुलन खोना आदि ब्रेन स्ट्रोक के लक्षण हो सकते है. हाथ से दवाब देखें. रोगी का जल्द से जल्द सीटी स्कैन करवाना चाहिए ताकि रोग का उपचार शुरु किया जा सके. आमतौर पर रोगी को उपचार के अनुसार फीजियोथैरेपी करवाई जाती है, जिससे रोगी स्वस्थ हो जाता है.

ऐसे करें रोगी की मदद

स्ट्रोक में रोगी की सहायता तुरन्त रूप से करना थोड़ा संभव नहीं होता है, जैसे की हार्ट अटैक के मामलों में सीपीआर देकर किया जा सकता है. जब तक रोगी का सीटी स्कैन ना करवाया जाए और स्थिति साफ ना हो, तब तक दवाइयां देना ठीक नहीं होता है. ऐसा करने पर दवाइयों का दुष्प्रभाव हो सकता है. ऐहतियात के तौर पर सबसे नजदीकी चिकित्सक से बीपी चैक करवाया जा सकता है. यदि ब्लड प्रेशर बढ़ा हो तो ये आसार होती है कि रोगी को ब्रेन स्ट्रोक हुआ है. यदि बीपी नॉर्मल होता है तो स्ट्रिमिक स्ट्रोक हुआ होगा.

स्ट्रोक का शरीर पर होता है ये इम्पैक्ट

अगर रोगी गोल्डन पीरियड में ही हॉस्पिटल पहुंचता है और उसका उपचार प्रारम्भ हो जाता है तो उसके शीघ्र ठीक होने के चांस बढ़ जाते है. इसके बाद फिजियोथैरेपी करवाना काफी अधिक जरुरी होता है. स्ट्रोक के रोगियों को आमतौर पर आईसीयू में ऑब्जरवेशन में रखा जाता है, क्योंकि इस दौरान रोगी का ब्लड प्रेशर बढ़ा रहता है. ऐसे में रोगी के ब्लड प्रेशर को कम करने की प्रयास होती है ताकि स्ट्रोक दोबारा अटैक ना कर सके. ऑब्जरवेशन में रखकर रोगी को देखा जाता है कि उसका ऑपरेशन कब तक किया जा सकता है. रोगी को फिजियोथैरेपी जीवन में लंबे समय तक लेनी होती है. स्मोकिंग ना करें, ब्लड प्रेशर के रोगियों को ब्लड प्रेशर कंट्रोल में रखना जरुरी है. शराब का सेवन करने वाले रोगियों को इससे दूरी बनानी होगी. एक्सरसाइज करने पर भी काफी अधिक स्वास्थ्य में सुधार होता है.

क्या ये जैनेटिक है

सीधे तौर पर स्ट्रोक जैनेटिक रोग नहीं है. ब्लड प्रेशर या डायबिटीज परिवार में होना अहम कारण हो सकता है. स्ट्रोक की जांच शुरु में ही करने के लिए लिपिड प्रोफाइल, ब्लड प्रेशर की जांच करनी चाहिए ताकि इसके खतरे को भांप सकें.

स्ट्रोक शरीर पर डालता है असर

स्ट्रोक जिस भी तरफ होता है तो शरीर के उलटे तरफ असर करता है. बाएं तरफ स्ट्रोक हुआ है तो दाएं तरफ ये असर डालता है. शरीर में कई ऐसे लक्षण भी दिखते हैं, जिससे ये पहचाना जा सकता है कि रोगी को स्ट्रोक का खतरा हो सकता है. शरीर में नंबनेस हो रहा होता है. रोगी को अचानक सर में दर्द होता है और ये अचानक ठीक हो जाता है. अचानक सिर में झनझनाहट होती है और ठीक हो जाती है. कभी कभी अचानक शरीर में विकनेस होती है और ठीक होती है. ऐसी स्थिति में रोगी को सीटी स्कैन या एमआरआई करवाना चाहिए.

किस स्थिति में गंभीर होता है स्ट्रोक

मरीज को यदि नंबनेस, कंपकपाहट, सिरदर्द हो रहा है तो उपचार करवाना चाहिए. लक्षण दिखने पर जांच जरुर करवानी चाहिए. शुरुआती लक्षण दिखने पर ही उपचार शुरु करने पर फायदा होता है. यदि रोगी को स्ट्रोक हुआ है और वो गोल्डन पीरियड में हॉस्पिटल नहीं पहुंच सका तो उसे इसके काफी नकारात्मक लक्षण देखने को मिल सकता है, जैसे शरीर पर पैरालाइज होना.

स्ट्रोक के बाद पैरालसिस होना कितना आम है

स्ट्रोक होने के कारण ही पैरालसिस होता है, जिसमें एक हिस्सा कम काम करता है या बिलकुल काम करना बंद कर देता है. स्ट्रोक के होने पर पैरालाइज होता है.

अस्पताल में होगी थैरेपी?

स्ट्रोक होने के बाद फिजियोथैरेपी लेना जरुरी होता है. यदि रोगी के वाइट्ल्स ठीक है तो उसे डिस्चार्ज कर सकते है. घर पर रहकर दवाइयां और फिजियो लिया जा सकता है.

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