बेहतरीन एक्टिंग से छाप छोड़ने वाली इस एक्ट्रेस की आज है 33वीं डेथ एनिवर्सरी
‘सीमा’, ‘सुजाता’, ‘बंदिनी’, ‘मैं तुलसी तेरे आंगन की’ जैसी फिल्मों में अपनी बेहतरीन अभिनय से छाप छोड़ने वाली अदाकारा नूतन की आज 33वीं डेथ एनिवर्सरी है। वुमन सेंट्रिक रोल वाली फिल्में उनकी पहचान बनीं। उन्होंने एक्ट्रेसेस के महज शोपीस के तौर पर इस्तेमाल होने की परंपरा को बदला। वे ‘मिस इंडिया’ में हिस्सा लेने वाली वाली पहली अदाकारा थीं।
हिंदी फिल्मों में स्विमसूट पहनने वाली भी वो पहली अदाकारा थीं। नूतन अपने दौर की एकमात्र ऐसी अदाकारा थीं जिन्हें 40 वर्ष की ऐज में लीड रोल ऑफर होते थे।
काम के लिए नूतन इतनी जुनूनी थीं कि 1990 में जब इन्हें ब्रेस्ट कैंसर डिटेक्ट हुआ तब भी ये शूटिंग करती रहीं। नूतन अपनी मां के साथ बिगड़े रिश्तों की वजह से भी चर्चा में रहीं। उन्होंने अपनी मां से 20 वर्ष तक बात नहीं की। राजेंद्र कुमार और शम्मी कपूर जैसे स्टार्स नूतन से विवाह करना चाहते थे, लेकिन ऐसा हो नहीं सका।
मां की सहेली ने नूतन को देख बोला था- कितनी बदसूरत बेटी है
नूतन का जन्म 4 जून, 1936 को बॉम्बे (मुंबई), महाराष्ट्र में हुआ था। इनके पिता कुमारसेन समर्थ जाने-माने फिल्ममेकर थे और मां फिल्म अदाकारा शोभना समर्थ थीं। नूतन ने स्वयं एक साक्षात्कार में खुलासा किया था कि बचपन में उन्हें सांवले रंग-रूप और कद-काठी के लिए काफी ताने सुनने पड़ते थे।
नूतन ने 1956 में दिए एक साक्षात्कार में बोला था, मुझे याद है जब मैं चार वर्ष की थी तो मां की एक सहेली ने मेरे बारे में बोला था, ‘ईमानदारी से कहूं, शोभना तुम्हारी बेटी कितनी बदसूरत है। तब मुझे समझ नहीं आया था कि क्या बोला गया था, लेकिन मैं ये समझ गई थी कि ये मेरे लिए था।’
नूतन ने आगे बोला था, ‘बाद में जब मैंने अपनी मां से इस बारे में प्रश्न किया तो उन्होंने मुझसे बोला था कि ये सुनकर वो काफी दुखी हो गई थीं, लेकिन उन्होंने मुझे समझाइश देते हुए बोला था, तुम्हें इसे कॉम्प्लिमेंट की तरह लेना चाहिए, जब तुम बड़ी होगी तो बहुत खूबसूरत दिखने लगोगी। मैं उनकी बात से संतुष्ट हो गई और इसके बाद जब भी कोई मेरे लुक्स पर कमेंट करता तो मैं कहती-आप प्रतीक्षा कीजिए और देखना, जब मैं बड़ी हो जाऊंगी तो अपनी अपनी मां की तरह खूबसूरत लगूंगी। मुझे लगता था कि यदि मां ने बोला है तो सच होगा।’
नूतन का दिल रखने के लिए मां शोभना ने उन्हें ये बातें कह तो दी थीं, लेकिन अंदर ही अंदर वो अपनी बेटी को लेकर परेशान रहती थीं। नूतन भी स्वयं को बदसूरत मानती थीं इसलिए आरंभ में उनके अंदर ये एकदम कॉन्फिडेंस नहीं था कि वो कभी हीरोइन बन पाएंगी।
शोभना समर्थ को भी लगता था कि उनकी बेटी कभी अदाकारा नहीं बन पाएगी, लेकिन 14 वर्ष की उम्र में नूतन ने बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट फिल्म ‘नल दमयंती’ के जरिए फिल्मी दुनिया में कदम रखा। इसके बाद उन्हें फिल्मों में स्थापित करने की जिम्मेदारी मां शोभना समर्थ ने ली।
नूतन के लिए मां ने बनाई फिल्म
1950 में शोभना समर्थ ने 14 वर्ष की नूतन के लिए ‘हमारी बेटी’ नाम की फिल्म बनाई। इसके बाद नूतन 1951 में फिल्म नगीना में नजर आईं। ‘नगीना’ के प्रीमियर पर नूतन स्वयं ही नहीं जा पाई थीं क्योंकि तब वो 15 वर्ष की थीं और फिल्म ए सर्टिफिकेट थी जिसे सिर्फ़ 18 वर्ष से ऊपर के लोग ही देख सकते थे।
नूतन इस बात से बहुत मायूस हो गई थीं। प्रीमियर वाले दिन वो शम्मी कपूर और मां शोभना समर्थ के साथ सिनेमाघर पहुंची थीं, लेकिन वॉचमैन ने उन्हें अंदर नहीं जाने दिया। नूतन की वॉचमैन से काफी बहस भी हुई, लेकिन उसने उनकी एक न सुनी और फिर वो अपनी पहली फिल्म बिना देखे ही सिनेमाघर के बाहर से लौट आईं। इसके बाद ही नूतन की एक और फिल्म हम लोग रिलीज हुई जिससे नूतन की पॉपुलैरिटी और बढ़ गई।
मां ने भेज दिया स्विट्जरलैंड
इन फिल्मों की कामयाबी के बाद नूतन को जो सम्बन्धी बदसूरती के ताने दिया करते थे, वो उनकी तारीफों के पुल बांधने लगे। नूतन भी फिल्मों में इतना रम गईं कि उन्होंने अपना वजन भी काफी घटा लिया। तभी उनकी मां ने उन्हें आगे की पढ़ाई के लिए स्विट्जरलैंड भेज दिया और स्वयं मसूरी शिफ्ट हो गईं। एक वर्ष बाद पढ़ाई करके नूतन मसूरी आ गईं। यहां उन्होंने मिस इण्डिया कॉम्पिटिशन में हिस्सा लिया और मिस मसूरी का टाइटल अपने नाम किया।
पढ़ाई पूरी करने के बाद नूतन ने 1955 में एक बार फिर फिल्मों में कमबैक किया। उन्होंने 1955 में आई फिल्म ‘सीमा’ में काम किया जिसके लिए उन्हें अपने करियर का पहला बेस्ट अदाकारा फिल्मफेयर अवॉर्ड भी मिला था। इसके बाद उन्होंने बैक टू बैक पेइंग गेस्ट, बंदिनी, सुजाता, छलिया, देवी, सरस्वतीचंद्र जैसी फिल्मों में अपनी अभिनय का टैलेंट दिखाकर दर्शकों का दिल जीत लिया।
नूतन कभी किसी इमेज में बंधकर नहीं रहीं। उन्होंने वुमन सेंट्रिक फिल्में कीं और अपने किरदारों में हमेशा कुछ न कुछ नयापन लाने की प्रयास की। फिल्म दिल्ली का ठग में वो स्विमसूट पहने नजर आईं। ये वो दौर था जब एक्ट्रेसेस साड़ी में लिपटी नजर आती थीं, लेकिन एक्ट्रेसेस की इस इमेज को तोड़ने का साहस सिर्फ़ नूतन ने दिखाया था।
राजेंद्र कुमार, शम्मी कपूर करना चाहते थे शादी
नूतन की खूबसूरती के सिर्फ़ दर्शक ही नहीं बल्कि कई मुम्बई फिल्म इंडस्ट्री अभिनेता भी दीवाने थे। शम्मी कपूर उनके बचपन के दोस्त थे। बड़े हुए तो दोनों डेटिंग भी करने लगे, लेकिन इनकी विवाह नहीं हो पाई। दरअसल, नूतन की मां को इस संबंध से परेशानी नहीं थी, लेकिन कुछ अन्य वजहों के चलते ये रिश्ता आगे नहीं बढ़ पाया।
राजेंद्र कुमार भी नूतन को बहुत पसंद करते थे और उनसे विवाह तक करना चाहते थे। वो नूतन की मां शोभना से उनकी बेटी का हाथ मांगने भी गए थे, लेकिन उन्होंने इससे इनकार कर दिया और उनकी तिरस्कार भी की। राजेंद्र कुमार और नूतन ने 1978 में रिलीज हुई फिल्म ‘साजन बिना सुहागन’ में दंपती का भूमिका निभाया था।
दो सितारों से रिश्ता टूटने के बाद 1959 में नूतन को भारतीय नेवी के लेफ्टिनेंट कमांडर रजनीश बहल में अपना जीवनसाथी मिला। इसके दो वर्ष बाद 1961 में दोनों एक बेटे मोहनीश के पेरेंट्स बने।
नूतन जब प्रेग्नेंट थीं तो उन्हें बिमल रॉय ने फिल्म ‘बंदिनी’ का ऑफर दिया। नूतन बिमल रॉय के साथ काम करने का मौका नहीं खोना चाहती थीं, लेकिन प्रेग्नेंसी की वजह से उन्होंने ये ऑफर ठुकरा दिया। पति रजनीश बहल को जब ये बात मालूम चली तो उन्होंने नूतन से फिल्म में काम करने को कहा।
पति ने हौसला बढ़ाया तो नूतन ने बिमल रॉय की ‘बंदिनी’ साइन कर ली। बाद में इस फिल्म में नूतन के काम को बहुत सराहना मिली। ये उनके करियर की सबसे बड़ी फिल्मों में से एक मानी जाती है जिसमें उनकी परफॉर्मेंस की सबसे अधिक प्रशंसा हुई। इसके बाद नूतन ने विवाह और मां बनने के बाद भी फिल्मों में काम करना जारी रखा।
नूतन का स्टारडम ऐसा था कि विवाह के बाद भी उनका फिल्मी करियर डाउन नहीं हुआ। वो हीरो के बराबर फीस लेती थीं और फिल्ममेकर्स हमेशा उन्हें अपनी फिल्म में कास्ट करने की राह देखते थे। उन्हें फिल्म ऑफर करने से पहले फिल्ममेकर्स को हमेशा इस बात का ध्यान रखना होता था कि फीमेल लीड रोल सशक्त हो और हीरो के मुकाबले कमतर न हो। इसी वजह से नूतन को पाथ ब्रेकिंग अदाकारा के तौर पर भी पहचाना जाता था।
संजीव कुमार को मारा था थप्पड़
1969 में फिल्म ‘देवी’ से जुड़ा एक किस्सा प्रसिद्ध है। इस फिल्म में नूतन संजीव कुमार के साथ काम कर रही थीं। फिल्म में काम करने के दौरान नूतन की संजीव कुमार से अधिक वार्ता नहीं होती थी, लेकिन धीरे-धीरे इनकी दोस्ती हो गई। सेट पर इनकी बॉन्डिंग देखकर फिल्मी मैगजीन में ये खबरें छप गईं कि दोनों का अफेयर है। ये समाचार जब स्वयं नूतन ने पढ़ी तो उन्हें बहुत गुस्सा आया और उन्होंने फिल्म के सेट पर सबके सामने संजीव कुमार को थप्पड़ जड़ दिया।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, नूतन ने ऐसा अपने पति रजनीश के कहने पर किया था। मीडिया रिपोर्ट्स में ये भी बोला गया था कि नूतन रजनीश के कहे मुताबिक अपने करियर के निर्णय लेती थीं। कई बार रजनीश द्वारा नूतन के दोस्तों के साथ बुरे बर्ताव की खबरें भी सामने आई थीं। हालांकि मोहनीश बहल ने इन खबरों पर अपना रिएक्शन देते हुए बोला था कि उनके पिता की इमेज खराब करने के लिए ऐसी खबरें फैलाई गई थीं।
उम्र बढ़ी तो सपोर्टिंग रोल निभाकर जीता दर्शकों का दिल
1976 की फिल्म ‘मैं तुलसी तेरे आंगन की’ के बाद नूतन सपोर्टिंग रोल निभाने लगीं। इस फिल्म में निभाए रोल के लिए नूतन को बेस्ट सपोर्टिंग अदाकारा का अवॉर्ड मिला था। उन्होंने ‘मेरी जंग’, ‘नाम’, ‘कर्मा’ जैसी फिल्में भी कीं।
1989 की फिल्म ‘कानून अपना-अपना’ में नूतन अंतिम बार नजर आईं। इनकी दो फिल्में ‘नसीबवाला’ और ‘कालीगंज की बहू’ मृत्यु के बाद रिलीज हुई थीं।
‘कर्मा’ में पूरी हुई अधूरी ख्वाहिश
नूतन ने अपने फिल्मी करियर में लगभग हर बड़े अभिनेता के साथ काम किया था, लेकिन दिलीप कुमार के साथ काम करने के लिए उन्हें लंबा प्रतीक्षा करना पड़ा। 1953 में ‘शिकवा’ नाम की एक फिल्म में नूतन को दिलीप कुमार के अपोजिट कास्ट किया गया था, लेकिन ये फिल्म थोड़ी सी शूटिंग के बाद बंद हो गई।
इस बात से नूतन मायूस हो गईं कि वो दिलीप कुमार के साथ काम नहीं कर पाईं, लेकिन 1986 में सुभाष घई ने जब फिल्म ‘कर्मा’ बनाई तो नूतन को दिलीप कुमार के साथ काम करने का मौका मिल गया।
मां से बिगड़े रिश्ते, 20 वर्ष नहीं की बात
नूतन को फिल्मों में लाने का श्रेय उनकी मां को दिया जाता है, लेकिन एक दौर ऐसा भी आया जब दोनों के संबंध काफी बिगड़ गए थे। दरअसल, नूतन ने अपनी मां पर उनके कमाए पैसों का गलत और उनकी मर्जी के बगैर इस्तेमाल करने का इल्जाम लगाया था।
इस वजह से उन्होंने मां के विरुद्ध न्यायालय मुकदमा तक कर दिया था। इस वजह से दोनों की 20 वर्ष तक वार्ता बंद रही। नूतन अपनी मां से इतनी खफा थीं कि एक बार उन्हें फ्लाइट में देखकर नूतन फ्लाइट से ही उतर गई थीं। शोभना समर्थ ने बेटी के इस बर्ताव पर बोला था कि उन्हें ऐसा करने के लिए उनके पति रजनीश ने भड़काया था।
1991 में कैंसर से हुई मौत
1990 में नूतन को ब्रेस्ट कैंसर डिटेक्ट हुआ। फरवरी 1991 में तबीयत बिगड़ने के चलते उन्हें मुंबई के ब्रीच कैंडी हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया। 21 फरवरी, 1991 को 54 वर्ष की उम्र में उन्होंने अंतिम सांस ली थी। कैंसर का पता लगने के बावजूद नूतन ‘गर्जना’ और ‘इंसानियत’ की शूटिंग कर रही थीं।
उनकी मृत्यु के बाद फिल्म ‘गर्जना’ कभी रिलीज नहीं हो पाई। वहीं, दूसरी फिल्म ‘इंसानियत’ में नूतन के साथ विनोद मेहरा भी थे जिनकी भी डेथ हो गई। ऐसे में 1994 में फिल्म की कास्ट बदलकर दोबारा शूटिंग हुई और फिर फिल्म रिलीज हो पाई।
बेहद दर्द में बीते थे अंतिम दिन
नूतन के अंतिम दिनों से जुड़ा किस्सा उनकी मां शोभना समर्थ ने एक साक्षात्कार में शेयर किया था। उन्होंने बोला था, ‘21 फरवरी को मैं हॉस्पिटल में नूतन के रूम के बाहर बैठी थी। मुझे रूम से नूतन के जोर-जोर से चिल्लाने की आवाजें आ रही थीं। जब तक मैं उन्हें देखने पहुंची, तब तक वो दम तोड़ चुकी थीं।’
नूतन के साथ खराब रिश्तों पर भी शोभना समर्थ ने बात की थी। उन्होंने साक्षात्कार में बोला था, जब नूतन की डेथ हुई तो मुझे उसके चले जाने का एकदम एहसास नहीं हुआ। आखिरी संस्कार के बाद जब मैं घर गई तो मैंने अपने नौकरों से बोला कि मुझे खाना दो। मुझे ऐसा लग रहा था कि जैसे कुछ हुआ नहीं है। दरअसल, नूतन समझ चुकी थी कि वो अधिक दिन जिंदा नहीं बचेगी। उसमें जीने की ख़्वाहिश भी समाप्त हो चुकी थी। वो अपना ख्याल रखती तो और अधिक जी सकती थी।
साल 2000 में शोभना समर्थ का भी कैंसर से मृत्यु हो गया था। वहीं, नूतन के पति रजनीश बहल की 2004 में घर में आग लगने से मृत्यु हो गई थी।