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फारिया अब्दुल्ला ने सीरीज ‘द जेंगाबुरु कर्स’ पर बात की: बोलीं…

फारिया अब्दुल्ला, मकरंद देशपांडे स्टारर ‘द जेंगाबुरु कर्स’ वेब सीरीज ‘सोनी लिव’ पर हाल ही में रिलीज हुई है, जिसे लेकर फारिया चर्चा में हैं दैनिक मीडिया से वार्ता के दौरान उन्होंने अपने कैरेक्टर के बारे में बात की पेश है फारिया से वार्ता के कुछ प्रमुख अंश

निर्देशक नीला माधव पांडा से क्या सीखा?

इस सीरीज के डायरेक्टर नीला माधव पांडा एकदम परफैक्शनिस्ट हैं उनकी विजुलाइजेशन इतनी क्लीयर है कि जब वे कुछ समझाते हैं, तब आंखों के सामने वह दिखने लगता था उनके इमोशनल विजुलाइजेशन में कभी-कभी मैं एक ही मूड में छह-छह, आठ-आठ घंटे बिता देती थी इस दौरान रोना या गुस्सा होना पड़ता था यह कैरेक्टर इतने लेयर से गुजरा है कि बहुत कुछ एक्सपीरियंस किया और बहुत कुछ सीखा है सच कहूं तो इस कैरेक्टर से निकलने के लिए मुझे काफी टाइम लगा

मैं रोते-रोते डायरेक्टर से कहती थी कि जिस तरह से मुझे कैरेक्टर के अंदर लेकर जाते हो, उसी तरह प्लीज मुझे बाहर भी निकालो मुझसे रोना रोका नहीं जा रहा था कैरेक्टर से निकालने में ज्यादातर डायरेक्टर और कभी-कभी मेरी मां सहायता करती थीं नीला सर, मुझे फ्यूचर में लेकर जाते थे वे कहते थे कि अब आपने इस कैरेक्टर को फील कर लिया है, अब इस स्टोरी का हाल यह है और आप यहां पर हैं इस तरह बेहतर फील करती थी

फिर तो कैरेक्टर को घर तक भी लेकर जाती रही होंगी?

मैं शूटिंग के दौरान दो महीने घर गई ही नहीं, क्योंकि मुझे डर लगता था कि कैरेक्टर से निकल जाऊंगी फिलहाल, ऐसा होता नहीं है मैं सोचती थी कि इसी वर्ल्ड में रहूं ताकि उस माइंडसेट से न निकलूं लेकिन मैंने रियलाइज किया कि एक प्वाइंट के बाद टूट रही थी मुझे घर जाना महत्वपूर्ण था ताकि मैं थोड़ी खुली सांस ले पाऊं थोड़ा अपने आपको रिलीफ कर पाऊं, क्योंकि बतौर अभिनेता अपने आप पर इतना प्रेशर नहीं डालना चाहिए

शूटिंग के बाद डबिंग करना होता था, तब भी वह कैरेक्टर में दिमाग में था यहां तक कि प्रमोशन के दौरान भी यह कैरेक्टर में दिमाग से पूरी तरह नहीं निकला है दरअसल, यह स्टोरी ही इतनी डार्क है कि एक बार इसमें घुस गए, तब निकलना कठिन होता है वह अपना इम्पैक्ट छोड़ ही देता है यह सीरीज करने के बाद मेरी लाइफ स्टाइल और सोच में थोड़े-थोड़े चेंजेस आए हैं शायद मैं दुनिया को समझा नहीं पाऊंगी, क्योंकि यह कठिन है लेकिन अपनी लाइफ में क्या बेहतर कर सकती हूं, वह कर रही हूं

शूटिंग के बाद क्या करती थीं?

शूटिंग के बाद म्यूजिक लगाकर एक घंटा खुली स्थान में नाचती थी, क्योंकि मुझे स्वयं को रिलीज करना होता था इससे मेरा वर्कआउट भी हो जाता था और माइंड भी क्लीयर हो जाता था कभी न्यूज पेपर पढ़ती तो कभी पेंटिंग करती थी वह पेंटिंग मेरे रूम में लगी होती थी इस तरह अपने आपको रूटीन में बनाए रखा

आपकी स्क्रीन प्रेजेंट बहुत बहुत बढ़िया होती है यह प्रोजेक्ट मिलने में कितना हेल्प करता है?

काफी हेल्प करता है आई थिंक, जिस तरह से अपने आपको दुनिया में डाल रहे हो, दुनिया उसी तरह से देखेगी लोग वर्सेटाइल अभिनेता की तरह देखेंगे उन्हें लगेगा कि यह तो हर तरह से दिख सकती है अपने मूड और लुक में जितना वैरायटी दिखा सकते हो, उतना अच्छा है सेम टाइम मुझे यह भी लगता है कि आपका काम ही आपको काम दिलाता है

आप बेहतरीन डांसर हैं इसकी प्रेरणा कब और किससे मिली?

डांस करने का शौक बचपन से है मैं बचपन में शीशे के सामने खड़ी होकर डांस करती थी कॉलेज के दौरान कुछ लोगों से मिली, तब समझ में आया कि भिन्न-भिन्न डांस स्टाइल भी होती है, जिसे करते हुए लोगों को देख पाते हैं फिर तो मेरे लिए नयी दुनिया खुल गई कि यह क्या कल्चर है, यह कैसी कम्युनिटी है

इस तरह डांस करते-करते मैं उस कम्युनिटी का इतना बड़ा हिस्सा बन गई कि लास्ट ईयर इण्डिया का सबसे बड़ा इवेंट ऑर्गेनाइज किया जहां पर हमने भिन्न-भिन्न डांस क्रू, रैपर, म्यूजिशियन, मतलब इण्डिया के सारे वेल नोन आर्टिस्ट को हैदराबाद में बुलाया और उनको होस्ट किया अब तो मेरा डांस पैशन बन गया है मैं इवेंट्स भी करना पसंद करती हूं

अच्छा, इस सीरीज को लेकर मन में क्या यादें रहेंगी?

इस सीरीज ने बहुत भगाया है इसकी शूटिंग जंगलों में हुई है पहले ही दिन जंगल में शूटिंग करते समय हमारे डीओपी का पैर टूट गया सीन के अनुसार मुझे भागना था मैं भाग रही थी और कैमरा मुझे फॉलो कर रहा था मैं जिस पत्थर पर से गुजरी, उसी पत्थर पर उनका पैर अटक गया और वे गिर गए उनका पैर टूट गया फिर तो वे हॉस्पिटल में भर्ती हो गए और शूट नहीं कर पाए यह बहुत भयावह वाकया था

नासिर और मकरंद राष्ट्र पांडे के साथ काम करके कैसा लगा?

बहुत कुछ सीखा ये दोनों इतने आसान हैं कि सूरज के नीचे जो भी टॉपिक है, उन सब पर उनसे बात कर सकते हैं नासिर सर और मकरंद सर, दोनों मन से बच्चे हैं उन्हें देखकर बड़ी खुशी होती है

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