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उत्तर प्रदेश में अपने सितारे चमकाने के लिए फिल्मी सितारों को आजमा रहे सभी दल

उत्तर प्रदेश की राजनीति में फिल्मी सितारों की धमक से लोकतंत्र को नयी ऊंचाई मिलने लगी है. चाहे बीजेपी (भाजपा) हो या सपा (सपा) और कांग्रेस, हर पार्टी में सिने अदाकार और अदाकारा अपने अपने भाग्य आजमाते रहे हैं और कुछ तो अभी आजमा भी रहे हैं.

राजनीति में इनके पदार्पण ने लोकतंत्र को मजबूती प्रदान की है. अदाकार से नेता बने कलाकारों में हिंदी और भोजपुरी दोनों क्षेत्र के कलाकार हैं.

भोजपुरी के कद्दावर कलाकार रवि किशन शुक्ला हों या आजमगढ़ से सांसद दिनेश लाल निरहुआ, या फिर हिंदी फिल्मों की अभिनेत्रियां हेमा मालनी और काजल निषाद तथा अदाकार से नेता बने कांग्रेस पार्टी के कद्दावर (अब नेता) राजबब्बर, सबने खूब भीड़ जुटाई है.

इस लोकसभा चुनाव के लिए बीजेपी ने उत्तर प्रदेश से दो कद्दावर भोजपुरी स्टार रवि किशन को गोरखपुर से और आजमगढ़ से दिनेश लाल निरहुआ को उम्मीदवार बनाया है. मुम्बई फिल्म इंडस्ट्री में बड़ा नाम हेमा मालिनी का मथुरा लोकसभा सीट से लगातार कई चुनावों से उम्मीदावार होना भी इसका जीता जागता उदाहरण है.

इतना ही नहीं, रामानंद सागर के रामायण’ में श्रीराम का भूमिका अदा करने वाले अरुण गोविल भी चुनावी समर में उतर चुके हैं और मेरठ लोकसभा क्षेत्र से चुनावी योद्धा बनकर न केवल राजनीति में पदार्पण कर चुके हैं बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा और स्वस्थ राजनीति के गवाह बनने की ओर कदम बढ़ा चुके हैं.

भोजपुरी अदाकार रवि किशन गोरखपुर से पहले ही अपनी सियासी पारी की आरंभ कर चुके हैं. साल 2014 में अपनी सियासी पारी की आरंभ करने वाले रवि किशन शुक्ला ने साल 2014 में पहली बार कांग्रेस पार्टी के टिकट पर अपने गृह जनपद जौनपुर की लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा था. हालांकि तब उन्हें हार का सामना करना पड़ा था. लेकिन उनकी सियासी ख़्वाहिश और बलवती हुई तथा साल 2017 में बीजेपी का दामन थामा और साल 2019 के लोकसभा चुनाव में संसद तक का यात्रा तय किया.

भोजपुरी फिल्मी दुनिया के अमिताभ बच्चन कहे जाने वाले रवि किशन शुक्ला पर बीजेपी ने एक बार फिर दांव लगाया है.

इधर, इण्डिया गठबंधन ने शुक्ला के विरुद्ध टीवी कलाकार काजल निषाद को चुनाव मैदान में उतारा है.

भोजपुरी स्टार दिनेश लाल यादव ने 2019 में बीजेपी के साथ अपने सियासी करियर की आरंभ की. बीजेपी के टिकट पर उन्होंने समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के विरुद्ध चुनाव लड़ा. तब वह हार गए थे. 2022 के चुनाव में अखिलेश यादव ने विधानसभा चुनाव लड़ा और लोकसभा सीट छोड़ दी. उनके इस्तीफे के बाद खाली हुई सीट पर उपचुनाव हुआ और निरहुआ ने अखिलेश के भाई और समाजवादी पार्टी प्रत्याशी धर्मेंद्र यादव को हरा दिया. 2024 में उनका सामना एक बार फिर समाजवादी पार्टी मुखिया अखिलेश यादव के भाई धर्मेंद्र यादव से ही है.

वरिष्ठ अदाकारा हेमा मालिनी यूपी की मथुरा लोकसभा चुनाव से तीसरी बार मैदान में हैं. वह लगातार दो बार यहां से सांसद रह चुकी हैं. हेमा मालिनी भले ही फिल्मी दुनिया में अब न दिख रही हों, लेकिन वह राजनीति में काफी एक्टिव हैं. अदाकारा के रूप में हेमा मालिनी को दर्शकों ने पसंद किया है.

रामानंद सागर के दूरदर्शन पर प्रसारित हुए शो ‘रामायण’ में श्रीराम का भूमिका अदा कर अरुण गोविल ने घर-घर में अपनी पहचान बनाई. वर्षों तक इसी भूमिका के साथ जीने वाले अरुण गोविल ने अपना सियासी करियर बीजेपी से प्रारम्भ किया है. बीजेपी ने उन्हें मेरठ से राजेंद्र अग्रवाल का टिकट काट कर अपना उम्मीदवार बनाया है. शुरुआती दौर में उन्होंने कई फिल्मों में साइड हीरो का भूमिका निभाया और फिर राजश्री प्रोडक्शन ने अरुण गोविल को फिल्म ‘सावन को आने दो’ में ब्रेक दिया. धारावाहिक ‘रामायण’ में राम की किरदार में लोगों ने अदाकार को काफी पसंद किया. आलम ये था कि लोग उन्हें असल में ईश्वर राम मानने लगे.

भाजपा की वरिष्ठ नेता और मंत्री स्मृति जुबिन ईरानी ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ धारावाहिक में ‘तुलसी’ का भूमिका निभाकर हर घर में लोकप्रिय हो गईं. वे उन चंद कलाकारों में शामिल हैं जिन्होंने अपनी स्क्रीन लोकप्रियता को सियासी कामयाबी में बदल दिया. हालांकि अब वो टीवी की दुनिया से अलग एक बड़ी राजनेता के रूप में जानी जाती हैं. उन्होंने 2019 के चुनाव में अमेठी से कांग्रेस पार्टी के नेता राहुल गांधी को हरा कर सबको चौंका दिया था. वह अपने क्षेत्र अमेठी में लगातर एक्टिव हैं. बीजेपी ने उन्हें एक बार फिर अमेठी से ही अपना प्रत्याशी बनाया है.

वरिष्ठ सियासी विश्लेषक रतनमणि लाल कहते हैं कि पिछले कुछ वर्षों से देखने को मिला है कि फिल्मी कलाकार अपनी सियासी राय खुलेआम देने से हिचकते नहीं है. इसके पहले उनकी लोकप्रियता के आधार पर टिकट दिया जाता था. चाहे विनोद खन्ना हों, धर्मेंद्र और शत्रुघ्न सिन्हा हों, लेकिन उसके बाद देखने को मिला कि जिस प्रकार से पॉलिटिकल फिल्में बनने का चलन प्रारम्भ हुआ, जो लोग उन फिल्मों में रहते हैं वो लोग राजनीति से प्रेरित बयान ऑफ द स्क्रीन भी देते हैं. चाहे वो विवेक अग्निहोत्री हों, कंगना रनौत हों या फिर अनुपम खेर. उनकी फिल्मी अपील और सियासी झुकाव उनको एक आईडियल उम्मीदवार बनाता है.

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