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पेट्रोल और डीजल कारों को बैन करने वाला पहला देश बना इथोपिया

पिछले कुछ सालों में ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री की बिक्री तेजी से बढ़ी है. इसके साथ इस इंडस्ट्री के एक्सपोर्ट में भी बढ़ोतरी हुई है. हालांकि, इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (EV) की लोकप्रियता बढ़ने की वजह से पेट्रोल और डीजल इंजन से चलने वाले व्हीकल्स बनाने वाली कंपनियों की मुश्किलें बढ़ सकती हैं. इथोपिया इन व्हीकल्स के इम्पोर्ट पर बैन लगाने वाला पहला राष्ट्र बन गया है.

एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, इथोपिया की ट्रांसपोर्ट एंड लॉजिस्टिक्स मिनिस्ट्री ने घोषणा की है कि वह सिर्फ़ इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (EV) के इम्पोर्ट की अनुमति देगी. इथोपिया को वित्तीय मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है और यह निर्णय फॉरेन एक्सचेंज को बचाने के लिए लिया गया है. ट्रांसपोर्ट एंड लॉजिस्टिक्स मिनिस्टर, Alemu Sime ने लॉजिस्टिक्स मास्टर प्लान की घोषणा की है. इसमें इथोपिया में ‘ग्रीन सॉल्यूशंस’ को शामिल किया जाएगा. Sime ने कहा, “यह फैसला लिया गया है कि सिर्फ़ इलेक्ट्रिक व्हीकल्स को ही इथोपिया में एंट्री की अनुमति मिलेगी.

हालांकि, इससे इस राष्ट्र के लोगों के लिए परेशानी बढ़ सकती है. इलेक्ट्रिक कारें महंगी होती हैं और इन्हें खरीदना अधिकांश लोगों के लिए कठिन होगा. Sime ने कहा कि इलेक्ट्रिक कारों के लिए चार्जिंग स्टेशंस लगाने की गवर्नमेंट प्रयास कर रही हैं. हालांकि, यह पता नहीं चला है कि पेट्रोल और डीजल से चलने व्हीकल्स पर यह बैन स्थायी है या नहीं. Hyundai, Isuzu और Volkswagen जैसी बड़ी ऑटोमोबाइल कंपनियों के इथोपिया में असेंबली प्लांट हैं. इनमें पेट्रोल और डीजल से चलने वाले व्हीकल्स के साथ ही EVs की भी मैन्युफैक्चरिंग की जाती है. इस निर्णय से इथोपिया के छह अरब $ के क्रूड ऑयल इम्पोर्ट में कमी होगी.

इससे हिंदुस्तान में भी ऐसी ऑटोमोबाइल कंपनियों पर असर पड़ेगा, जो इस अफ्रीकी राष्ट्र में व्हीकल्स का एक्सपोर्ट करती हैं. हाल के सालों में इथोपिया ने EV के अधिक इस्तेमाल पर बल दिया है. इसकी गवर्नमेंट ने 1.48 लाख इलेक्ट्रिक कारें और 4,800 इलेक्ट्रिक बसों के इम्पोर्ट के लिए 10 साल की योजना लागू की है. EVs के लिए VAT और एक्साइज को भी घटाया गया है. इथोपिया ने एनर्जी से जुड़े इंफ्रास्ट्रक्चर में काफी निवेश किया है. अफ्रीका का सबसे बड़ा हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर प्लांट भी इथोपिया में बनाया जा रहा है. इस प्लांट में आरंभ में लगभग 3,000 मेगावॉट का प्रोडक्शन होने का अनुमान है.

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