सुप्रीम कोर्ट का फैसला,अगर रीसेल में घर ले रहें हैं तो मकान पर बकाया बिजली बिल जरूर करे चेक

सुप्रीम कोर्ट का फैसला,अगर रीसेल में घर ले रहें हैं तो मकान पर बकाया बिजली बिल जरूर करे चेक

रियल एस्टेट के सेकेंडरी बाजार से यदि आप रीसेल में घर खरीद रहें हैं तो पहले उस फ्लैट या मकान पर बकाया बिजली बिल को जरूर चेक कर लें. दरअसल, उच्चतम न्यायालय ने निर्णय सुनाया है कि किसी संपत्ति के पिछले मालिक का बिजली बकाया नए खरीददार से वसूल किया जा सकता है. हिंदुस्तान के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा,किसी परिसर में बिजली की आपूर्ति फिर से प्रारम्भ करने से पहले वितरण लाइसेंसधारी को पिछले उपभोक्ता के बकाए के भुगतान की शर्त 2003 अधिनियम (विद्युत अधिनियम 2003) की योजना के अनुसार वैध है.

कई सारी याचिकाओं को सुनने के बाद फैसला 

शीर्ष न्यायालय कई सारी याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी कि क्या पूर्व मालिक का बिजली बकाया बाद के मालिक से लिया जा सकता है. विद्युत यूटिलिटीज ने तर्क दिया था कि 2003 अधिनियम की धारा 43 के अनुसार बिजली की आपूर्ति की ज़िम्मेदारी पूर्ण नहीं है. यदि पिछले मालिक का बकाया है, तो नया कनेक्शन इनकार किया जा सकता है जब तक कि पिछले मालिक द्वारा बकाया राशि का भुगतान नहीं किया जाता है.

हर हाल में बिजली की सप्लाई करे

इसके विपरीत, नीलामी से खरीदने वालों ने तर्क दिया कि धारा 43 वितरण लाइसेंसधारियों को इस बात के लिए बाध्य करती है कि वो हर हाल में बिजली की सप्लाई करे. यह तर्क दिया गया था कि विद्युत अधिनियम 1910 और विद्युत (आपूर्ति) अधिनियम 1948 के प्रावधान, बिजली बोर्ड को यह अधिकार नहीं देते हैं कि वह ऐसे परिसर के नए मालिक या कब्जाधारी से पिछले मालिक के बिजली बकाया की वसूली कर सके और बिजली बकाया का भुगतान सिर्फ उसी आदमी पर होता है जिसे बिजली की आपूर्ति की जाती है.

मालिक या अतिक्रमण करने वाले के बारे में 

धारा 43 के अनुसार बिजली की सप्लाई करने की जिम्मेदारी परिसर के मालिक या अतिक्रमण करने वाले के बारे में है. 2003 का अधिनियम उपभोक्ता और परिसर के बीच सामंजस्य की बात करता है. धारा 43 के तहत, जब बिजली की आपूर्ति की जाती है, तो मालिक या अतिक्रमण करने वाला सिर्फ उन विशेष परिसरों के संबंध में उपभोक्ता बन जाता है जिसके लिए बिजली की मांग की जाती है और विद्युत उपयोगिताओं द्वारा प्रदान की जाती है. 19 मई को दिए गए निर्णय में, शीर्ष न्यायालय ने 19 मामलों का निर्णय किया, जो करीब दो दशकों से लंबित थे.