मुकेश अंबानी और अनिल अंबानी पर लगी 25 करोड़ रुपये का लगा जुर्माना हुआ खारिज
SEBI News: मुकेश अंबानी (Mukesh Ambani) और अनिल अंबानी (Anil Ambani) को लेकर एक बड़ी समाचार सामने आ रही है। दोनों अंबानी ब्रदर्स को अब बड़ी राहत मिल रही है। प्रतिभूति अपीलीय न्यायाधिकरण (SAT) ने अधिग्रहण नियमों का पालन न करने पर उद्योगपति मुकेश अंबानी, अनिल अंबानी और अन्य लोगों पर 25 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाने का सेबी का आदेश शुक्रवार को खारिज कर दिया। जी हां… अब अंबानी ब्रदर्स को ये जुर्माना नहीं देना होगा। बता दें यह मुद्दा साल 2000 में रिलायंस इंडस्ट्रीज के अधिग्रहण नियमों का कथित तौर पर अनुपालन न करने से संबंधित है।
अप्रैल 2021 में लगाया था जुर्माना
भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) ने अप्रैल, 2021 में मुकेश अंबानी, अनिल अंबानी, नीता अंबानी, टीना अंबानी और कुछ अन्य लोगों पर कुल 25 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया था। अनिल अंबानी और टीना अंबानी साल 2005 में इस कारोबार से अलग हो गए थे।
सेबी ने जारी किया ये आदेश
सेबी ने अपने आदेश में बोला था कि साल 2000 में रिलायंस इंडस्ट्रीज के प्रवर्तक और संबंधित लोगों ने कंपनी में पांच फीसदी से अधिक हिस्सेदारी के अधिग्रहण के बारे में सूचना नहीं दी थी। इस आदेश को अंबानी परिवार के सदस्यों की तरफ से अपीलीय न्यायाधिकरण में चुनौती दी गई थी।
नहीं किया है नियमों का उल्लंघन
न्यायाधिकरण ने 124 पृष्ठों के अपने फैसला में बोला है कि हमने पाया कि अपीलकर्ता ने शेयरों का पर्याप्त अधिग्रहण एवं अधिग्रहण नियमों (SAST) का उल्लंघन नहीं किया है। अपीलकर्ता पर किसी कानूनी अधिकार के बगैर जुर्माना लगाया गया है। परिणामस्वरूप विवादित आदेश को बरकरार नहीं रखा जा सकता और इसे रद्द किया जाता है।
4 सप्ताह में वापस करना है पैसा
इसके साथ ही सैट ने सेबी को जुर्माने की राशि चार सप्ताह के भीतर लौटाने के लिए भी कहा। अपीलकर्ताओं ने जुर्माने के तौर पर 25 करोड़ रुपये सेबी के पास जमा करा दिए थे।
6.83 फीसदी हिस्सेदारी अधिग्रहण किया
सेबी ने अपने निर्णय में बोला था कि गैर-परिवर्तनीय सुरक्षित विमोच्य डिबेंचर के साथ संबद्ध वारंट पर विकल्प के प्रयोग के परिणामस्वरूप आरआईएल प्रवर्तकों ने अन्य लोगों के साथ मिलकर 6.83 फीसदी हिस्सेदारी अधिग्रहण किया था जो नियमों के अनुसार निर्धारित पांच फीसदी की सीमा से अधिक थी। इस तरह अर्जित शेयरों के बारे में रिलायंस के प्रवर्तकों और उनके सहयोगियों ने कोई सार्वजनिक जानकारी नहीं दी थी। ऐसी स्थिति में उन पर अधिग्रहण नियमों के प्रावधानों का उल्लंघन करने का इल्जाम लगा था।