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प्राइवेट और सरकारी कर्मचारियों के लिए बड़ी खुशखबरी, जानिए क्या है सरकार की प्लानिंग

कहा जा रहा है कि गवर्नमेंट जल्द ही मजदूर की परिभाषा बदलने जा रही है अब न्यूनतम वेतन तय करने के बजाय परिवार की जरूरतों के हिसाब से वेतन तय किया जाएगा. सरकार ने 2025 तक न्यूनतम वेतन को चरणबद्ध ढंग से खत्म करने और इसकी स्थान जीवनयापन वेतन लाने का लक्ष्य रखा है. इसके लिए अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) की सहायता ली जाएगी.

एक रिपोर्ट के मुताबिक, श्रम विभाग के ऑफिसरों ने ILO से सहायता मांगी है इसके लिए ILO को क्षमता निर्धारित करने, डेटा एकत्र करने और यह पता लगाने में सहायता करने के लिए बोला गया है कि जीवनयापन मजदूरी पर क्या असर पड़ेगा. अभी राष्ट्र में मजदूरों को न्यूनतम वेतन के आधार पर भुगतान किया जाता है. जो पूरे राष्ट्र में समान रूप से लागू है लेकिन गवर्नमेंट को कर्मचारियों की लागत के आधार पर वेतन तय करने की आवश्यकता महसूस हो रही है.

लिविंग वेज क्या होगी
लिविंग वेज के अनुसार एक मजदूर की आय उसकी बुनियादी जरूरतों के आधार पर निर्धारित की जाएगी. जिसमें आवास, भोजन, स्वास्थ्य, शिक्षा और वस्त्र आवश्यकताओं के आधार पर भुगतान किया जाएगा. इसलिए नया वेतन लागू होने पर मजदूरों की आय में बढ़ोतरी होगी क्योंकि इन जरूरतों को पूरा करने के लिए साफ रूप से अधिक धन की जरूरत होगी. इस मुद्दे से जुड़े एक सरकारी अधिकारी ने बोला है कि हम एक वर्ष में न्यूनतम वेतन से आगे निकल जाएंगे

क्या होगा फायदा
भारत ILO का संस्थापक सदस्य है और 2022 से इसके शासी निकाय का सदस्य राष्ट्र है. अधिकारियों ने बोला कि गवर्नमेंट 2020 तक सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) हासिल करने की दिशा में काम कर रही है. ऐसी अटकलें भी हैं कि न्यूनतम वेतन को जीवन निर्वाह वेतन से बदलने से लाखों लोगों को गरीबी से बाहर निकालने के हिंदुस्तान के प्रयासों को बढ़ावा मिल सकता है. अधिकारी ने बोला कि हमने लिविंग एज के कार्यान्वयन से सकारात्मक आर्थिक परिणामों के लिए क्षमता निर्माण, डेटा के व्यवस्थित संग्रह और साक्ष्य के लिए आईएलओ से सहायता मांगी है.

भारत में 50 करोड़ से अधिक मजदूरों ने
14 मार्च को जिनेवा में आयोजित ILO के शासी निकाय की 350वीं बैठक में न्यूनतम वेतन सुधारों को स्वीकृति दी. भारत में 50 करोड़ से अधिक कामगार हैं जिनमें से 90 प्रतिशत असंगठित क्षेत्र में हैं इन्हें रोजाना न्यूनतम 176 रुपये या इससे अधिक वेतन मिलता है. यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप किस राज्य में रहते हैं. हालाँकि, 2017 के बाद से राष्ट्रीय स्तर पर न्यूनतम मजदूरी में कोई संशोधन नहीं हुआ है. यह राज्यों के लिए जरूरी नहीं है और इसलिए कुछ राज्य इससे भी कम भुगतान करते हैं. वर्ष 2019 में पारित वेतन संहिता अभी तक लागू नहीं की गई है. इसमें वेतन स्तर का प्रस्ताव है जो सभी राज्यों के लिए जरूरी होगा.

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