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एमबीए की पढ़ाई के लिए लोन लेना हुआ मुश्किल

जीवन में कुछ हासिल करने के लिए लाखों लोग बड़े शहरों में आते हैं. लेकिन कुछ लोग कड़ी मेहनत करते हैं और इसमें सफल भी होते हैं फिर भी अन्य लोग इस रास्ते पर ठोकर खाते हैं. यहां जीतने वालों से अधिक हारने वाले हैं साथ ही हारने वालों ने जीवन में एक सबक सीखा है. वे जानते हैं कि उनसे कहां गलती हुई

ऐसे लोगों की संख्या भी कम नहीं है जिन्होंने आईआईटी, एमबीए किया है और अपना स्वयं का बिजनेस खड़ा करने का सपना देखा है. आईटी सेक्टर में आज भी लाखों लोग यही सपना लेकर बड़े शहरों में आते हैं. जो लोग आये हैं उनमें से कुछ ऐसी उपलब्धियाँ हासिल करेंगे जो पहले किसी ने नहीं कीं. गिरीश मातृभूतम निश्चित रूप से उन लोगों में से एक हैं जिन्होंने यह उपलब्धि हासिल की है.

तो कौन हैं ये गिरीश मातृभूतम्, इन्होंने कौन सी कंपनी बनाई, क्या है इनकी जीवन कहानी? आइए जानते हैं इसके बारे में सबकुछ

मातृभूमिम तमिलनाडु के एक मध्यम वर्गीय परिवार में पले-बढ़े और उन्होंने कई कठिनाइयों का अनुभव किया. हालांकि गिरीश का यात्रा सरल नहीं रहा, लेकिन उनका यात्रा दूसरों के लिए प्रेरणा बन सकता है. उनके मुश्किल दिन तब प्रारम्भ हुए जब वे एमबीए की पढ़ाई कर रहे थे. उसे घर और दोस्तों से बिना पैसे के भी पैसे मिल जाते थे.

लेकिन जैसा कि बोला गया है, गिरीश एक उदाहरण हैं कि कड़ी मेहनत का फल मिलता है. उनका अब करीब 95,000 करोड़ का कारोबार है जी हां, यह बात आपको भी दंग कर सकती है गिरीश ने अब फ्रेशवर्क नाम की सॉफ्टवेयर कंपनी बनाई है, जिसकी मूल्य 95 हजार करोड़ है.

आईआईटी में दाखिला लेने के लिए पैसे नहीं थे

मातृभूतम का जन्म तमिलनाडु के त्रिची शहर में हुआ था और उन्हें अपने शुरुआती जीवन में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था. गिरीश के पिता जनता के लिए काम करते थे. गिरीश विद्यालय में एक औसत विद्यार्थी थे. वह आईआईटी में नहीं पहुंच सके. उन्होंने अपने गृहनगर के पास शनमुघा कला, विज्ञान, प्रौद्योगिकी और अनुसंधान अकादमी से अपनी इंजीनियरिंग पूरी की. बाद में उन्होंने मद्रास यूनिवर्सिटी से एमबीए की पढ़ाई पूरी की.

1992 में उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद एमबीए किया. अपने परिवार में वित्तीय कठिनाइयों के बावजूद, वह अपनी शिक्षा जारी रखने के लिए अपने पिता से पैसे माँगते थे. उनके पिता आर्थिक कठिनाई में थे और उन्होंने एक सम्बन्धी से ऋण लिया था.

लेकिन उन्हें अमेरिका में काम करने का मौका मिला उन्हें एचसीएल कंपनी समेत कई कंपनियों में काम करने का अनुभव था 2010 में, उन्होंने और उनके दोस्त शॉन कृष्णासामी ने चेन्नई में फ्रेशवर्क्स कंपनी की स्थापना की.

2011 में, फ्रेशवर्क्स को शुरुआती निवेश के रूप में $1 मिलियन की फंडिंग प्राप्त हुई. जिस कंपनी ने इस आरंभ का प्रतीक्षा किया वह बाद में गौरव बन गई. दोनों ने एक टीम बनाई गिरीश ने कंपनी को अपना घर बना लिया और दिन का अधिकतर समय कंपनी में बिताया. इसके बाद फ्रेशवर्क विदेशी कंपनियों को भी चुनौती देने लगा. अपने काम के लिए जानी जाने वाली यह अब 95,000 करोड़ की कंपनी बन गई है.

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