बिहार

शिक्षक दिवस पर खान सर ने व्यापारी शिक्षकों ने खिलाफ उठाई आवाज

खान सर ने यूट्यूब से बच्चों को पढ़ाना प्रारम्भ किया. पढ़ाने के देसी अंदाज ने खान सर को रातों-रात पूरे विश्व में चर्चित कर दिया. अब वो खान ग्लोबल स्टडीज के नाम से संस्थान चलाते हैं. खान सर सस्ती शिक्षा के पैरोकार हैं. यूपीएससी सहित अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कराते हैं. उनका संस्थान अब नीट और इंजीनियरिंग की तैयारी भी कराने लगा है. कोविड काल में जब सब कुछ बंद था तब खान सर ने यूट्यूब से बच्चों को पढ़ाना प्रारम्भ किया.

Khan sir ki class

शिक्षा महंगी होती जा रही है, ऐसे में गरीब परिवार के बच्चे कैसे पढ़ेंगे ?

-शिक्षा का व्यवसायीकरण बंद होना चाहिए. शिक्षा महंगी होगी, तो दायरा सिमट जाएगा. ऐसे में व्यापारी शिक्षकों के विरुद्ध समाज को खड़ा होना होगा. अकेले मेरे कहने से कुछ नहीं बदलेगा. हम अपने यहां मिनिमम फीस में बच्चों को पढ़ाते हैं. ताकि साधन विहीन बच्चे भी पढ़ सकें.

भारत गवर्नमेंट नयी शिक्षा नीति लेकर आई है. इस पर क्या कहेंगे ?

-यह क्रांतिकारी कदम है. क्रियान्वयन पर कामयाबी निर्भर करती है. बिहार जैसे राज्य में तीन वर्ष का ग्रेजुएशन पांच वर्ष में होता था. अब चार वर्ष का ग्रेजुएशन सुन के बच्चे डर रहे हैं. बच्चों को भरोसा दिलाना होगा कि उनके समय की बर्बादी नहीं होगी. नयी शिक्षा नीति के बारे में गवर्नमेंट ने जनता और एक्सपर्ट से राय मांगी थी. इस कारण बेहतर स्वरूप तैयार हुआ है. सुधार जारी है.

बीएससी, मैनेजमेंट करने के बाद यूपीएससी के विद्यार्थियों को पढ़ाने लगे. आप एक्सिडेंटल शिक्षक बने हैं क्या ?

-जब हमें क्लास में शिक्षक की बात समझ नहीं आती थी, तो हम दोस्तों की सहायता लेते थे. इसके बाद लगा कि दोस्त बनकर यदि विद्यार्थियों को पढ़ाया जाए, तो उस तक पहुंचना आसान होगा. वहीं से शिक्षक बनने की प्रेरणा मिली.

ऑफलाइन मोड से ज्याद आजकल औनलाइन मोड में बच्चे पढ़ रहे हैं, कौन अधिक अच्छा है?

-ऑफलाइन, औनलाइन दोनों सुविधा बच्चों के पास है. ऑफलाइन में फीस अधिक होती है. औनलाइन मोड सीधे क्लासरूम से लाइव होता है इसलिए कम खर्च में भी गरीब बच्चे पढ़ सकते हैं. औनलाइन और ऑफलाइन में मोड की पढाई में कोई अंतर नहीं होता है. हां औनलाइन पढ़ाई करने वाले बच्चों को सेल्फ डिसिपिलिन में रहना होगा.

खान सर को कभी फ्रैक्शन का जोड़ नहीं आता था वो आईआईएम तक कैसे पहुंचे?

-हर बच्चे की तरह हम भी सोचे थे कि इंटर हो जाएगा तो इंजीनियरिंग करेंगे. बीच में एनडीए में जाने की ख्वाहिश हो गई. चुंकि फाइनेंसियल स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी कि चार वर्ष तक इंजीनियरिंग की फीस दे पाते. फिर सोचे कि एनडीए ही ठीक रहेगा. लेकिन मेडिकल में छट गए. इसके बाद बीएससी किए, पीजी किए और यह सिलसिला आईआईएम तक पहुंचा.

दैनिक भास्कर के मंच से शिक्षक दिवस पर आप क्या संदेश देंगे

-शिक्षा का व्यवसायीकरण न हो. बच्चों को पैसे, समय और शिक्षा की अहमियत को समझाना होगा. सिर्फ़ सिलेबस समाप्त कर देना और जॉब दिला देना ही शिक्षा का उद्देश्य नहीं हो. किसी के मार्कशीट से उसे नहीं आंका जाए. शहर में तो अधिक शिक्षित लोग हैं और वहीं वृद्धााश्रम अधिक हैं. गांव में तो वृद्धाश्रम नहीं खुले हैं आज भी ज्वाइंट फैमली ही है. शिक्षा का अर्थ होना चाहिए अपनी संस्कृति को बचाकर रखना.

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