जनकपुर से लेकर सीतामढ़ी में कहीं भी मां जानकी के बाल रूप में नहीं पड़ी दिखाई
भगवान राम का जन्म अयोध्या में हुआ। यहां राम बाल रूप में विराजमान हैं, लेकिन जहां जानकी का जन्म हुआ, वहां मां जानकी का बाल स्वरूप ढूंढने से भी नहीं मिलेगा। सीतामढ़ी से लेकर जनकपुर तक मां का बाल रूप कहीं नहीं दिखता। श्रद्धालु यहां मां का बाल रूप देखने आते हैं, लेकिन उन्हें मां का रूप युवा हालत में ही दिखता है।
मां जानकी जन्मस्थली मंदिर के महंत तो इसे त्रेता युग की गलती बताते हैं। मां सीता के बाल स्वरूप मूर्ति के लिए तो तुलसी पीठ के महंत श्रीराम भद्राचार्य और किशोर कुणाल भी कोशिश कर चुके हैं, लेकिन अभी तक मां के बाल स्वरूप की प्रतिमा वाला मंदिर नहीं बन सका।
सीतामढ़ी में बाल रूप में नहीं मिलीं मां जानकी
मां जानकी के बाल रूप की पड़ताल के लिए दैनिक मीडिया की टीम पटना से लगभग डेढ़ सौ किलोमीटर दूर सीतामढ़ी पहुंची। सबसे पहले हमने मां जानकी की जन्म जगह पुनौरा धाम पहुंचे। यहां मंदिर में मां जानकी युवा रूप में दिखाई पड़ी।
आसपास लोगों से बात करने पर पता चला कि मां का यही रूप यहां सालों से देखने को मिल रहा है। बाहर से आए पर्यटकों ने भी कहा कि मां का बाल रूप नहीं दिखा। जनकपुर से लेकर सीतामढ़ी में कहीं भी मां जानकी के बाल रूप में नहीं दिखाई पड़ीं।
महंत ने कहा त्रेता युग में ही हो गई गलती
मां जानकी जन्म जगह पुनौरा धाम पर हमारी मुलाकात महंत कौशल किशोर दास से हुई। मां के बाल रूप की मूर्ति नहीं होने के प्रश्न पर महंत ने कहा कि सीतामढ़ी में मां का जन्म हुआ, लेकिन यहां कहीं भी मां का बाल रूप नहीं है। मैं बचपन से ही मां की सेवा में हूं। 75 वर्ष की उम्र हो गई है। मां को बाल रूप में लाने के लिए 50 वर्ष से संघर्ष कर रहा हूं। गवर्नमेंट का इस पर कोई ध्यान नहीं है।
जहां मां का जन्म हुआ, वहां बाल रूप होना चाहिए। पर्यटक और श्रद्धालु भी मां के बाल रूप का दर्शन करने के लिए आते हैं। जिस तरह से अयोध्या में ईश्वर राम बाल रूप में विराजमान हैं, ऐसे ही पुनौरा धाम से लेकर सीतामढ़ी के अन्य मंदिरों में भी मां का बाल रूप होना चाहिए। वैशाख में यहां सीता जन्मोत्सव भी मनाया जाता है, लेकिन मां के बाल रूप नहीं होने की कमी खलती है।
मंदिर बनेगा तो बाल रूप में आएंगी मां
महंत कौशल किशोर बताते हैं मां का जन्म पुनौरा धाम में हुआ, लेकिन बाल रूप में मूर्ति नहीं है। श्रद्धालु कुंड को बाल रूप मानकर पूजा करते हैं। जब मां का जन्म हुआ, तो यह मिथिला का राज था। राजा जनक मां को पुनौरा धाम से उठाकर जनकपुर ले गए। महंत बताते हैं- यह कोशिश लंबे समय से चल रहा है। मंदिर बनेगा तो मां का बाल रूप लगाया जाएगा।
महंत का बोलना है कि धार्मिक न्यास बोर्ड ने भी इस पर कोई काम नहीं किया। इस दिशा में काम होना चाहिए। त्रेता युग की गलती में सुधार को लेकर जानकी जन्म जगह की तरफ से क्या कोशिश किया गया? इस प्रश्न पर महंत कौशल किशोर ने कहा कि मैं लगातार कोशिश कर रहा हूं। हम सुधार में लगे हैं। मां की ख़्वाहिश होगी तो काम पूरा हो जाएगा।
मां की डबल मूर्ति की कहानी।।दोनों युवा अवस्था
मंदिर के व्यवस्थापक श्रवण कुमार बताते हैं कहीं भी मां बाल रूप में नहीं है। मंदिर में दो मूर्तियां हैं। दोनों मूर्तियों की कहानी भी काफी रोचक है। बहुत पहले मां की मूर्ति मंदिर से चोरी हो गई थी। तब सिंहासन को खाली नहीं रखा जा सकता था। इस स्थिति में बनारस से मूर्ति खरीदकर मंगाई गई, लेकिन 10 दिन में ही चोरी हुई मां की मूर्ति मिल गई। चोर पास के हॉस्पिटल में मूर्ति लाकर रख गए। यह मूर्ति त्रेता युग में ही स्थापित की गई थी। तब से दोनों मूर्तियों को मंदिर में रखा गया।
मंदिर के व्यवस्थापक श्रवण कुमार बताते हैं कि जन्मभूमि है तो मां के बाल रूप की मूर्ति होनी चाहिए। जनकपुर में भी बाल हालत की मूर्तियां नहीं हैं। धरोहर के रूप में हर वर्ष मिट्टी की बाल हालत की मूर्तियां बनाई जाती हैं। इसकी झांकी भी निकाली जाती है। बहुत दिनों तक मिट्टी की मूर्ति रखी थी, लेकिन अब नहीं है। बाल काल की मूर्ति नहीं होने वाली गलती कहां से हुई यह नहीं पता है। सिंहासन पर तो मां का बाल रूप में ही मूर्ति होनी चाहिए।
रामभद्राचार्य ने भी किया था बाल रूप का प्रयास
रामभद्राचार्य ने भी घोषणा की थी कि पुनौरा धाम में मां जानकी की बाल रूप की मूर्ति वाला मंदिर बनाया जाएगा। तुलसी पीठ के महंत की घोषणा के बाद कुंड के पीछे एक मंदिर बनवाया जा रहा था, लेकिन अब वह आधा अधूरा पड़ा है। मंदिर पूरा नहीं हो सका है। इसी तरह कुंड में भी एक बाल स्वरूप की मूर्ति वाला मंदिर बनाने की योजना थी, लेकिन उस पर भी अभी कोई काम नहीं हो पाया है। आचार्य किशोर कुणाल ने कुंड पर मां के बाल स्वरूप के रूप की मूर्ति वाला मंदिर बनाने की पूरी योजना बनाई थी। इस मंदिर को लेकर सर्वे भी हो गया, लेकिन काम प्रारम्भ नहीं हो पाया।
जानकी प्रकट स्थली में भी मां का बाल रूप नहीं
मां जानकी जन्म स्थली के बाद हम सीतामढ़ी शहर में स्थित मां जानकी प्रकट स्थली पहुंचे। यह शक्ति पीठ है। कहा जाता है कि मां को जन्म के बाद यहीं लाकर रखा गया था। यहीं मां का छठियार भी हुआ था। यहां भी मां की मूर्ति बाल रूप में नहीं दिखी। यहां भी एक कुंड है। कुंड के ऊपर बने मंदिर में मां की बाल रूप की एक मूर्ति है, लेकिन वह मिट्टी की है। प्राण प्रतिष्ठा वाली कोई भी मूर्ति यहां बाल रूप वाली नहीं है।
यहां हमारी मुलाकात मंदिर के पुजारी बबलू पुरोहित से हुई। वे कहते हैं कि यहां मां का युवा रूप हैं। उनका तर्क है कि युवा रूप में मां और युवा रूप में श्री राम मंदिर में विराजमान हैं। बाल रूप की मिट्टी मूर्ति को लेकर बबलू पुरोहित बताते हैं कि सब रेट से होता है। त्रेता युग में यह राजा जनक का क्षेत्र था। वह ऋषियों को चारों तरफ बसाए थे। पश्चिम में पुंडरीक ऋषि रहते थे, वह गांव का नाम पुनौरा पड़ गया। दक्षिण में फर्क ऋषि रहते थे, आज भी उस गांव का नाम फरका है।
पूर्व में चक्र ऋषि रहते है, आज भी इसका नाम स्त्री चक है। उत्तर में कपिलदेव ऋषि रहते थे, आज उसका नाम कपरौल है। बीच में घड़ा रखकर रावण चला गया था, जिससे अकाल पड़ गया और राजा ने जब हल चलाया तो उसी जगह से माता प्रकट हुईं।
नारद जी ने मां का नाम सीता रखा था, हालांकि मां को राजा जनक ने जानकी नाम से पुकारा। सुनैना माता ने बाल रूप देख किशोरी जी नाम रख दी थी। जहां सीता प्रकट हुईं, वह सीतामही है। सीतामही से इस क्षेत्र का नाम सीतामढ़ी हो गया। बबलू पुरोहित बताते हैं- मां का बाल रूप नहीं है, लेकिन रेट तो यही है। क्योंकि मां का जन्म यहीं हुआ था।
पर्यटकों ने कहा-कहीं नहीं दिखी मां की बाल काल वाली मूर्ति
पुणे से सीतामढ़ी दर्शन के लिए आए गोपाल बताते हैं- जनकपुर से लेकर सीतामढ़ी तक कहीं भी मां की बाल काल वाली मूर्ति नहीं दिखी। मां यहां युवा हालत में हैं। मां की जन्म स्थली है तो यहां मां के बाल रूप की मूर्ति होनी चाहिए थी। जनकपुर में भी महिला हालत में मां की मूर्ति देखने को मिली।
पुणे से आई भानू बताती हैं- कहीं बाल रूप में मां नहीं दिखी। विवाह की मूर्ति दिखी है। चेन्नई से आए कन्नन ने भी कहा कि कहीं मां के बाल काल वाली मूर्ति नहीं दिखी है। केवल युवा हालत वाली मूर्तियां ही मंदिरों में स्थापित हैं।
अब सीतामढ़ी के जानकी मंदिर की कहानी जानिए
सीतामढ़ी जिला मुख्यालय से 3 किलोमीटर की दूरी पर पुनौरा धाम है। जिसे मां जानकी की जन्म स्थली बोला जाता है। मां जानकी जन्म स्थाली मंदिर के महंत कौशल किशोर दास बताते हैं- यह पुंडरीक ऋषि की तपोभूमि रही है।
सीतामढ़ी में चारों तरफ से ऋषियों का आश्रम था। यह क्षेत्र काफी तप वाला रहा। यहां ऋषियों का प्रताप रहा। यह सब राजा जनक का क्षेत्र था, पुंडरीक ऋषि को यह जमीन दान में दे दी गई थी। लंकापति रावण ऋषियों की इस तपोभूमि को तबाह करना चाहते थे। रावण ने ऐसा तंत्र किया, जिससे राजा जनक के इस क्षेत्र में अकाल पड़ गया।
महंत कौशल किशोर दास बताते हैं सूखा से मचे त्राहिमांम के बीच भविष्यवाणी हुई। इस क्षेत्र के राजा और रानी साथ-साथ हल चलाएंगे तो वर्षा हो जाएगी।
राजा जनक सीतामढ़ी पहुंचे। वहां उनका कैंप बनाया गया। इसके बाद वह वहां से 3 किलोमीटर दूर पुनौरा धाम पहुंचे, जहां हल चलाना प्रारम्भ कर दिए। जमीन में हल एक कलश से टकरा गई, जिसमें से मां जानकी बाल हालत में प्रकट हुईं।
इसके बाद इस क्षेत्र में जबरदस्त बारिश होने लगी। मां जानकी को पुनौरा धाम से लेकर राजा जनक सीतामढ़ी में बनाए अपने कैंप पहुंचे। वहां मां को (मड़ई) फूस के घर में रखा गया। इस कारण से पहले इस क्षेत्र का नाम सीता मड़ई और बाद में सीतामढ़ी हो गया। जहां राजा जनक ने कैंप बनाया और जहां मां मड़ई को रखा गया। वहां भी मां का मंदिर है। उसी स्थान मां का छठियार भी किया गया था। इसके बाद पुनौरा धाम मां जानकी की जन्म स्थली को ख्याति मिल गई।