इस दाल का सेवन करने से एनीमिया जैसी समस्या हो जाती है दूर
भारत में शाकाहारी लोगों की बहुतायत है। उनके स्वस्थ रहने के लिए महत्वपूर्ण है कि वे ऐसा आहार लें जो शरीर को फिट रखे और महत्वपूर्ण पोषक तत्वों की सप्लाई भी करता रहे। ऐसे आहार में मसूर की दाल (Masoor Dal) बहुत फायदेमंद है। इस दाल के सेवन से एनीमिया जैसी परेशानी से बचा जा सकता है। यह दाल वजन को कंट्रोल करने में भी सहायता करती है। एक्सपर्ट मानते हैं कि मसूर की दाल का नियमित सेवन किया जाए तो यह शरीर को सामान्य रोंगों से दूर रखती है।
पूरी दुनिया में जितनी भी दालें हैं, उनमें मसूर की दाल ऐसी है जो शीघ्र गल जाती है। इस दाल के पोषक तत्वों को पूरी तरह से पाना है तो पकाने से पहले इसे कुछ देर तक पानी में भिगों दें। ऐसा करने से यह पूरी तरह प्योर हो जाएगी और शरीर को जरूरी विटामिन्स और मिनरल्स की आपूर्ति कर देगी। न्यूट्रिशियन कंसलटेंट मानते हैं कि इस दाल में कोर्बोहाइड्रेट, फाइबर, प्रोटीन के अतिरिक्त आयरन, कैल्शियम, मैग्नीशियम और अन्य पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में मिलते हैं।
यह दाल दो प्रकार की होती है। छिलके वाली है तो काली मसूर कहलाती है और छिलका उतार देने पर यह लाल मसूर या लाल दाल कहलाती है। गोश्त के साथ पकाने में इस दाल का स्वाद और गुण बढ़ जाते हैं। जाने-माने शायर मिर्जा ग़ालिब अपने भोजन में शामिल जिस दाल-गोश्त की प्रशंसा की है, उसमें यही दाल शामिल है। माना जाता है कि गोश्त की गर्मी को यह दाल शांत कर देती है।
1. यह दाल ब्लड में उपस्थित रेड सेल्स को बढ़ाती है जो एनीमिया से बचाव और शरीर को स्वस्थ रखने के लिए महत्वपूर्ण हैं। फूड एक्सपर्ट और कंसलटेंट नीलांजना सिंह के मुताबिक इस दाल में फोलेट पाया जाता है जो विटामिन बी का रूप है और यह ब्लड में रेड सेल्स बढ़ाने में मददगार है। इसका फायदा यह रहता है कि शरीर में रक्त की क्वॉलिटी बनी रहती है और एनीमिया से बचाव होता है। ब्लड की यही क्वॉलिटी हार्ट को भी स्वस्थ बनाए रखती है। उसका कारण यह है कि फोलेट ब्लड की धमनियों (Artery) की दीवारों को होने वाले हानि से बचाने में सहायक है। जिससे हार्ट से जुड़ी समस्याओं का खतरा कम हो जाता है। प्रगनेंट लेडी के लिए भी लाल दाल को बहुत फायदेमंद माना जाता है। इस दाल में उपस्थित फाइबर और मैग्नीशियम भी पूरे शरीर में रक्त, ऑक्सीजन और पोषक तत्वों के प्रवाह में सुधार करते हैं।
2. यदि वजन को कंट्रोल में रखना चाहते हैं तो मसूर की दाल सहायता करेगी। इस दाल में फाइबर और प्रोटीन जैसे पोषक तत्व लंबे समय तक पेट भरा हुआ महसूस कराते रहते हैं, जिससे अतिरिक्त भोजन की ख़्वाहिश नहीं होती। यह दाल डाइजेशन सिस्टम को भी सुधारने में मददगार है। यदि कब्ज नहीं होगा और पाचन सिस्टम दुरुस्त रहेगा तो वजन बढ़ने की आसार घट जाती है। यहां यह भी गौरतलब है कि डाइजेशन सिस्टम दुरुस्त रहेगा तो शरीर को स्वस्थ रहने के लिए अतिरिक्त एनर्जी नहीं लगानी होगी। इसका फायदा यह रहता है कि शरीर के इम्यूनिटी सिस्टम में लगातार सुधार होता रहेगा। ऐसा भी माना जाता है कि मसूर की दाल में उपस्थित विशेष प्रोटीन (Peptides) शरीर की प्रतिरोधी क्षमता बढ़ाता है, साथ ही संक्रमण को भी रोकता है।
3. इस दाल को मसल्स और दिमाग के लिए भी फायदेमंद माना जाता है। रिसर्च यह भी बताती है लाल दाल का सेवन बेड कोलेस्ट्रॉल को रोकने में भी सहायता करता है। इस दाल में उपस्थित प्रोटीन मसल्स को मजबूत बनाने और उनमें लगातार पोषकता पहुंचाने में कारगर माना जाता है। इस दाल में उपस्थित मिनरल्स दिमाग के नर्वस सिस्टम को कूल रखते हैं और उन्हें बिगड़ने से भी बचाते हैं। बढ़ती उम्र में तो इस दाल का सेवन दिमाग के लिए बहुत फायदेमंद माना जाता है। इस दाल में हाइपोकोलेस्टेरोलेमिक (Hypocholesterolemia) भी पाया जाता है जो बेड कोलेस्ट्रॉल को रोकने में कारगर है। ऐसा होने से ब्लड प्रेशर भी कंट्रोल में रहता है।
4. मसूर की दाल का सेवन स्किन का ग्लो भी बढ़ाए रखता है। वह इसलिए कि इसमें पाए जाने वाले विटामिन्स और मिनरल्स स्किन के नीचे के सेल्स को लगातार मजबूत बनाए रखने में सहायता करते हैं। ऊपरी तौर पर यह दाल स्किन के लिए फायदेमंद है। ब्यूटी एक्सपर्ट मसूर की दाल से बने पैक को स्किन और चेहरे के लिए फायदेमंद मानते हैं। उसका कारण यह है कि यह दाल स्किन को फंगल और संक्रमण से बचाने में मददगार है। यह बालों को भी हेल्दी बनाने में किरदार निभाती है। यह कार्य इस दाल में उपस्थित प्रोटीन और एंटीऑक्सीडेंट करते हैं। ये बालों को जड़ों से मजबूत बनते हैं, जिससे उनके झड़ने का खतरा कम हो जाता है।
पूरी दुनिया में जितनी भी प्रकार की दालें पाई जाती हैं, उनमें मसूर की दाल की उत्पत्ति बहुत पुरानी मानी जाती है। हिंदुस्तान के प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथों में इसका वर्णन है, लेकिन उनसे पहले भी दुनिया की हिस्ट्री में इस दाल का जिक्र मिलता है। एक अमेरिकी रिसर्च मानती है कि यह दाल करीब 12,000 साल पूर्व फर्टाइल क्रेसेंट रीजन (मध्य-पूर्व क्षेत्र) में सबसे पहले पैदा उसके बाद फिर 5000 और 4000 ईसा पूर्व के बीच इसकी खेती ईस्ट में जॉर्जिया चली गई और अंत में 2000 ईसा पूर्व के आसपास भारतीय क्षेत्र में पहुंच गई।
पुरातात्विक साक्ष्य बताते हैं कि हिंदुस्तानियों ने शुरुआती हड़प्पा काल से मसूर की दाल को अपना लिया था। हिंदुस्तान के आयुर्वेदिक ग्रंथ ‘चरकसंहिता’ में इस दाल (मसूराश्च) की जानकारी है और इसे शीतल, मधुर और रूखापन पैदा करने वाली बोला गया है। ग्रंथ के मुताबिक पित्त-कफ गुनाह में इसका सूप फायदेमंद है। आज यह दाल पूरी दुनिया में खाई जाती है।